पदमश्री नेक राम शर्मा जिनको हिमाचल मिलेटस मैन के नाम से जाना जाता है ने कहा कि जलवायु अनूकुलित मोटे अनाज (मिलेटस) की खेती व लोगों के स्वास्थय को लेकर सीपीयू के कार्यों को सराहा। उन्होंने बताया कि आज से 50 – 60 वर्ष पूर्व जो रागी, ज्वार, बाजरा की खेती होती थी उस खेती को लोगों ने करना बंद कर दिया है। श्री अन्न खेती का पुर्नउत्थान करने की आज आवश्यकता है। इसमें बिटामीन, खनिज पदार्थो की प्रचुर मात्रा पाई जाती है, जो हमें स्वस्थ रखती हैं और हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। इसको हम अपनी जीवन शैली में उतारने से कैंसर, मधुमेह, हृदय संबधित रोगों भंयकर बीमारियों से बच सकते है। यह सब जानकारी पदमश्री नेक राम शर्मा ने करियर प्वाइंट विश्वविद्यालय में अयोजित एक दिवसीय मिलेट्स (श्री अन्न) की खेती को प्रोत्साहित करने तथा सतत पशुपालन को बढ़ावा देने हेतु जागरूकता एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम में दी।
यह कार्यक्रम आईसीएआर भारतीय चरागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, भारतीय हिमालय चरागाह केंद्र पालमपुर के सहयोग से अनुसूचित जाति उपयोजना के अंतर्गत आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य किसानों को जलवायु-अनूकुलित मिलेट्स (श्री अन्न) की खेती की आधुनिक तकनीकों के प्रति जागरूक करना और इस खेती से होने वाले लाभों की जानकारी देना था।
आईजीएफआरआई के सौजन्य से इस कार्यक्रम को विश्वविद्यालय में चिन्हित 100 अनुसूचित किसानों को बाजरे व रागी(मंडल) का 120 किलोग्राम बीज किट, छोटे-छोटे खेती के औजार एवं प्रशिक्षण मुहैया करवाया गया ताकि आगामी समय में किसान मिलेटस की खेती को आगे बढ़ा सकें। विश्वविद्यालय ने इससे पहले भी 47 किसानों को लगभग 250 क्वांटिल जौं का बीज भारतीय कृषि अनुसंधान पूसा दिल्ली के सौजन्य से वितरीत किया था, अच्छी पैदावार होने पर किसानों ने पंजाब में चल रहे एमएसपी मूल्य पर से ज्यादा भाव में बेचा था और कुछ बीज विश्वविद्यालय के बीज बैंक स्थापित किया है।
कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि मुख्य अतिथि प्रोफेसर पी.एल.गौतम प्रो चांसलर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय बिहार द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ किया गया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा कि मिलेट्स न केवल पोषण से भरपूर हैं, बल्कि यह कम पानी में भी अच्छी उपज देने वाले फसल हैं, जो जलवायु परिवर्तन के समय में किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प बन सकती हैं। मिलेटस का बीज बिना किसी रासायनिक के भी कई वर्षो तक संग्रहित किया जा सकता है। इसमें रोग प्रतिरोधक व किटाणुनाशक प्रतिरोधिकता होती है इस बीज की खेती जिसमें रागी, जवार, बाजरा को बिना जल की उपलब्धिता से बंजर क्षेत्रों में आसानी से उगाया जा सकता है। मिलेट्स कम वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाई जाने वाली पोषक और बहुपयोगी फसलें हैं, जो न केवल मानव स्वास्थ्य के लिए उपयोगी हैं बल्कि पशुओं के लिए गुणवत्तापूर्ण आहार का भी अच्छा स्रोत हैं। उन्होंने बताया कि यह फसलें वर्षा-आधारित कृषि क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से लाभकारी हैं। इसके अलावा, इनका उपयोग पशुओं के लिए गुणवत्तापूर्ण चारा उपलब्ध कराने में भी किया जा सकता है, जिससे पशुधन की सेहत एवं उत्पादकता में वृद्धि होती है। इससे पशुपालकों को कम लागत में बेहतर उत्पादकता मिल सकती है।
कार्यक्रम के विषय विशेषज्ञों व वैज्ञानिकों ने मिलेट्स जैसे बाजरा, ज्वार, कोदो, रागी आदि की खेती की वैज्ञानिक विधियाँ, जल प्रबंधन, जैविक उत्पादन तकनीक, बीज संरक्षण, एवं पशुओं के आहार में मिलेट्स के उपयोग पर विस्तार से जानकारी दी। प्रशिक्षण सत्र में किसानों को मिलेट्स की जैविक खेती, फसल चक्र, बीज संरक्षण, बाजार उपलब्धता, और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी गई।
सीपीयू के कुलपति डा. संजीव शर्मा ने इस कार्यक्रम में उपस्थित सभी विशेषज्ञों, वैज्ञानिकों व अलग-अलग गांव से आये हुए लोगों का स्वागत किया तथा वि.वि. की मिलेटस को लेकर उपलब्धिया बताई। कार्यक्रम में उपस्थित टी.आर.शर्मा ने कहा कि वि.वि. ने जो कार्य इस क्षेत्र मे लिये मिलेटस पर किया है उसके लिये विश्वविद्यालय बधाई का पात्र है।
इस कार्यक्रम में श्री टीआर शर्मा अडजेंक्ट फैकल्टी, सीपीयू, डॉ श्रीराज सलीम भट्ट वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं वैज्ञानिक प्रभारी और सुरिंदर पॉल वैज्ञानिक भारतीय हिमालयन चरागाह केंद्र आईसीएआर आईजीएफआरआई पालमपुर भी उपस्थित रहे।
इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति डा. संजीव शर्मा, डीन अकेडमिक डा. कुलदीप कुमार, रजिस्ट्रार गुलशन संधू, उपस्थित रहे। कार्यक्रम को सफल बनाने में डा. गुलशन शर्मा निदेशक सामुदायिक सेवा निदेशालय सीपीय, डा. शालिनी, असिस्टेंट प्रोफेसर विनोद शर्मा, असिस्टेंट प्रोफेसर रूतिका, असिस्टेंट प्रोफेसर पारूल लाहिक, असिस्टेंट प्रोफेसर अतुल ठाकुर का विशेष योगदान रहा।