सुभाष ठाकुर*******
हिमाचल प्रदेश में पिछले तीन वर्षों से बरसात ने सैकड़ों लोगों की जान ले ली है, हजारों घर, गाड़ियां, सरकारी और निजी शिक्षण संस्थानों तथा अन्य विभागों के कई संस्थान जमीजोद्द कर हजारों करोड़ों रुपए का नुकसान हो चुका है बरसात अभी भी जगह जगह तबाही मचा रही है।

पिछले तीनों वर्षों में बरसात में आई आपदा को गहनता से मंथन कर विचारणीय विषय यह है कि प्रदेश के किसी भी कौने में आपदा के दौरान प्रदेश के किसी भी देवी देवताओं के मंदिरों और उनके स्थलों को कोई नुकसान नहीं हुआ है। जबकि अन्य सभी क्षेत्रों में बरसाती आपदा ने कहर मचाया कर तबाही मचाई हुई है।

विडंबना देखो कि हिमाचल प्रदेश में देव भूमि के नाम की सियासी रोटियां तो हर राजनीतिक पार्टियों के राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय नेता अपने राजनीतिक मंचों से चिला चिला कर अपने मतदाताओं को लुभावने भाषणों में बांधने का काम करते हैं ।

लेकिन उसी देव भूमि में स्थापित महाभारत व रामायण में जिन ऋषिमुनियों का वर्णन हुआ है उन सभी के मंदिर हिमाचल की देव भूमि में स्थापित भी हैं। उन सभी ऋषिमुनियों के हिमाचल प्रदेश की जनता प्राचीनकाल से देवी देवताओं के रूप में अपनी अपार आस्था के चलते पूजा अर्चना करते आए हैं । उन सभी शक्तिशाली ऋषिमुनियों देवी देवताओं के मेले और त्यौहारों में नेता मुख्यातिथि बनकर अपनी सियासी रोटियां सेंक रहे हैं वह भी उन्हीं देवताओं की कमेटियों में शामिल करदार, पुजारी, भंडारी ,प्रधान ,सचिव इत्यादि कार्यकारणी का के नाम दिए जा रहे हैं। देव समाज में यह विशेषकर चिंता का विषय है।

जबकि देव समाज देव नीतियों में मेले त्यौहार इत्यादि उत्सव का आयोजन प्रदेश के सभी 12 जिलों में अपनी अपनी स्थानीय संस्कृति में आयोजित होते रहे हैं।

वर्तमान परिदृश्य के चलते देव भूमि हिमाचल प्रदेश में देव समाज को राजनीतिक दलों द्वारा वोट बैंक की सियासी रोटियां सेंकने के लिए देव कमेटियों में भी राजनीतिक विचारधार के लोगों को प्रभावी तरीके से शामिल कर देव समाज पर बहुत बड़ा प्रहार किया जा रहा है । यही कारण है देव समाज के प्रति लोगों की आस्था में कमी होती जा रही है और देव भूमि हिमाचल प्रदेश के शक्तिशाली देवी देवताओं द्वारा देव नीति द्वारा अनेकों बात मानव समाज को चेतावनी देते रहे हैं लेकिन नेताओं और कुछ लोगों को ढोंग लगता है , क्या अब भी सियासत्कार पांडु शिला के तटस्थ रहने को कौन वैज्ञानिक तकनीक मानेंगे , या प्रभु कृपा की शक्ति साक्षात प्रदर्शन की झलक ।

यही नहीं सैंज में माता रानी का मंदिर, कैसे जलभराव में दिखा डूबा नहीं खड़ा रहा । सिराज के बैगसाइड नाले में शिव मंदिर ,हनुमान मंदिर ,माता शिकारी की पहाड़ी के चारों तरफ की पहाड़ी में सैकड़ों जगह भूस्खलन लेकिन माता रानी सबसे ऊंची चोटी पर विराजमान ।

देवताओं के मेले और त्यौहारों में नेताओं को मुख्यातिथि बना कर देवती देवताओं की नीतियों के विरुद्ध माना जाता था । एक समय वो भी था जब देवताओं के सामने कोई भी व्यक्ति फूलमालाओं को पहनकर या दुल्हा सेहरा पहन कर सामने नहीं जाता था , लेकिन अब तो देवताओं के मेले त्यौहारों में नेताओं को मुख्यातिथि का दर्जा दिया जाता है।


*देवताओं की शक्ति का सम्मान*
यह देखना दिलचस्प होगा कि हिमाचल प्रदेश के माननीय नेताओं द्वारा विधानसभा स्तर में इस मुद्दे पर सत्तापक्ष और विपक्ष को गंभीरता से चर्चा करनी चाहिए और गहनता से विचार करना चाहिए कि देव भूमि हिमाचल प्रदेश में होने वाली आपदाओं की घटनाओं को जानना और देवी देवताओं के मंदिरों और स्थलों पर होने वाले नेताओं की जनसभाओं और देवताओं के मेलों और त्यौहारों में नेताओं के मुख्यातिथि का निमंत्रण पर गहनता से विचार करना होगा। ताकि देवताओं की आस्था में श्रद्धालुओं की नाराजगी से बचा जा सके।
देवताओं की शक्ति और उनके प्रभाव को समझने के लिए यह एक अच्छा अवसर हो सकता है। देव समाज और उनकी परंपराओं का सम्मान करना और उनकी शक्ति को समझना बहुत जरूरी है।
*देवताओं की सुरक्षा और सम्मान*
हिमाचल प्रदेश के देवताओं के मंदिर और देव स्थलों की सुरक्षा और सम्मान के लिए देव कमेटियों द्वारा किए जा रहे प्रयासों की समीक्षा करना भी जरूरी है। यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि देवताओं की शक्ति और उनके प्रभाव को समझने के लिए सही कदम उठाए जा रहे हैं।
*आगे की कार्रवाई*
हिमाचल प्रदेश के माननीय नेताओं को विधानसभा में इस मुद्दे पर चर्चा करनी चाहिए और देवताओं की शक्ति और उनके प्रभाव को समझने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। इससे न केवल देव समाज का सम्मान बढ़ेगा, बल्कि प्रदेश की सांस्कृतिक विरासत को भी बचाया जा सकेगा।
