सुभाष ठाकुर*******
चौहार घाटी में देव हुरंग नारायण के मंदिर में आज देव हुरंग नारायण के गुर को आई खेल में देवता ओर डायनों के युद्ध के परिणाम की घोषणा करते हुए देवताओं को जीत बताई है। देवता के गुर रामलाल ने खेल में और भी बहुत कुछ खेल में बताया कि घाटी के आठ गांव भी इस युद्ध के निशाने में रहे। जिसमें ग्रांमन, करसेहड, बुलांग , टिककर ,कलगेड , कथोग, ऊपरला रोपा, दुरुन शामिल बताए।
देवताओं और डायनों के बीच सदियों से डायनाबाड (घोघरधार) नारायण खुह के पास में इस युद्ध का आगाज होता है। देव समाज से जुड़े हुए पूर्वजों द्वारा बताया जाता है कि यहां पर रात्रि के दौरान भाद्रमास के पूरे महीने पहले आवाजें सुनाई देती रही। इस युद्ध के दौरान आवाजें टकराने जैसे सुनाई देती थी।
देव हुरंग नारायण के मंदिर में कैसे होती है देवताओं और डायनों के युद्ध के परिणाम की घोषणा
देवी देवताओं और डायनों का युद्ध भाद्रमास की पहली प्रविष्ट से शुरू होता है और पूरा भाद्र मास तक यह युद्ध चला रहता है। युद्ध में देवता हुरंग नारायण चमड़े से दूर भागता है वहीं देव पोशाकोट उसका सामना करते हैं , देव हुरंग नारायण आपार शक्तियों से युद्ध करते हैं।बताया जाता है कि डायनों द्वारा गंदगियों को फैलाकर देवताओं के साथ युद्ध किया जाता है वहीं देवता अपनी शक्तियों से युद्ध करते हैं जिसके कारण देवताओं की जीत होते है देवता बारिश कर शुद्धि करने की चर्चा देव समाज में सुनाई जाति रही है । अक्सर होता भी वहीं है। कि देवताओं की जीत पर बारिश होती है ,डायनों की जीत भी कई बार हुई है तब मौसम साफ रहता है और फसल भी अच्छी होती है । देवताओं की जीत पर बीमारियों तथा अन्य त्रासदी से बचाव होने की बात कही जाती है।
भाद्रमास की पंच ऋषि के इस दिवस पर जिसे घाटी में नाकपांजू के नाम से जाना जाता है । भाद्रमास की पहली प्रविष्ट से देवताओं के मंदिरों में पूजा अर्चना बंद रहती है लेकिन देशी घी का दिया पूरा महीना जलाया जाता है। पंच ऋषि जिसे घाटी में नाकपांजू के नाम से यह दिन प्रचलित है । इस दिन देवताओं और डायनों के युद्ध की घोषणा इस प्रकार होती है , सबसे पहले सभी देवताओं के मंदिरों में गुर, पुजारी ,भंडारी अन्य सभी देवताओं के लोगों के इकठ्ठा होने के बाद देवताओं की पूजा की जाती है और उसके बाद हारका होता है जिसमें सभी देवताओ से कार्यक्रम की देव संस्कृति के माध्यम से इजाजत ली जाती है। स्थानीय देवी देवताओं को पूछ कर आगामी कार्यवाही की ओर बढ़ते हैं।
हुरंग नारायण देवता व घाटी के अन्य सभी देवताओं की इस प्राचीन संस्कृति को संजोय रखा है और इस देवताओं और डायनों के प्राचीन ओर ऐतिहासिक युद्ध की घोषणा देवता के गुर को बैठे बैठे अचानक खेल आती है और देववाणी से युद्ध के परिणाम की घोषणा होती है।

हुरंग नारायण देवता के मंदिर में जब यह सारी प्रक्रिया देव संस्कृति के माध्यम से देव समाज द्वारा की गई उसी दौरान देव हुरंग नारायण के गुर रामलाल को खेल आई और देववाणी से युद्ध में देवताओं की जीत के परिणाम की घोषणा की है।
हुरंग रामायण के वर्तमान में पुजारी राजू राम ,भंडारी मान सिंह, डूमच संतराम , मान सिंह ,पंडित हंस राज यह जानकारी पूर्व में रहे पुजारी इंद्र सिंह दी । उन्होंने बताया कि देववाणी में इस वर्ष और घाटी के आठ गांवों को इस युद्ध की देव कार्यवाही द्वारा इलाज करने की हिदायत भी दे डाली है। स्थानीय भाषा में जिसे कहते हैं कि युद्ध में डायनों की बुरी नजर पड़ी हुई है लेकिन देवताओं ने अपने सभी अनुयायियों को बचाया हुआ है पूजा पाठ करने को कहा है।
यह युद्ध भाद्रमास की पहली प्रविष्ट से लेकर पंच ऋषि के दिन तक चलता है, जिसमें देवताओं के गुरुओं को देव ताली और देवताओं को अपने भीतर बुलाने के मंत्रों का उच्चारण करना आता है। उन्हें ही इस युद्ध की बेहतर जानकारी मालूम हुआ करतीं है कि डायनों और देवताओं के युद्ध का मतलब ।
*देवताओं की जीत*
देवताओं के युद्ध के परिणाम आते ही सदियों से यह भी एक साक्ष्य देखने को मिलता रहा है कि देवताओं की जीत हुई तो बारिश बहुत अधिक रहती है जिसमें नुकसान इत्यादि होता है ।जबकि डायनों की जीत होने पर मौसम तुरंत साफ हो जाता है और किसानों की फसल अच्छी होती है। जैसे ही आज युद्ध का परिणाम देवता हुरंग नारायण के मंदिर से आया कि युद्ध में देवताओं की जीत हुई है और डायनों की हार हो चुकी है तो स्थानीय लोगों में जहां देवताओं की जीत पर खुशी मनाई वही देवताओं को भारी बारिश से होने वाले नुकसान से रक्षा करने की प्रार्थना भी की । युद्ध के परिणाम में देवताओं की जीत होती है, जो चौहार घाटी के लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है। देवताओं की जीत से लोगों को शांति और सुख की प्राप्ति होती है। इस युद्ध में आमतौर पर यह देव हुरंग नारायण के साथ उनके भाई देवता घड़ौनी नारायण, देवता पोशाकोट बाजीर, देवता पेखरू डांगू, देव त्रैयालु महादेव और देव द्रोण भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तथा अन्य देवता भी देव हुरंग नारायण के साथ शामिल रहते हैं।