सरदार पटेल विश्वविद्यालय में हुए भर्ती प्रोफेसरों के फर्जी दस्तावेज सोशल मीडिया में वायरल

प्रोफेसरों की फर्जी नियुक्तियों के मामलों पर पढ़े लिखों लाखों युवाओं से हो रहे धोखे पर सत्तापक्ष और विपक्ष खामोश क्यों ?

सुभाष ठाकुर*******

हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में हुई प्रोफेसरों की भर्तियों के दस्तावेजों का फर्जीवाड़ा अब एक एक करके सोशल मीडिया में भी वायरल होने शुरू हो चुके हैं।

आरटीआई से सूचना जुटाने वालों ने नाम सार्वजनिक नही करने की शर्त पर दस्तावेज अमर ज्वाला संपादक से सांझा करते हुए कहा कि शिक्षा का स्तर इतना गिरा दिया है कि प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कांग्रेस सरकार सत्तासीन होते हुए भी खामोश बैठ कर फर्जी शिक्षकों से देश के हजारों लाखों विद्यार्थियों के भविष्य के साथ धोखा होने से नही बचाया जा रहा है।

सरदार पटेल विश्वविद्यालय मंडी में नियुक्त सहायक प्रोफेसर द्वारा एक निजी विश्वविद्यालय के नाम से अनुभव प्रमाण पत्र अपनी नियुक्ति के दौरान संलग्न कर अपना एपीआई स्कोर बढ़ा कर प्रथम स्थान हासिलकर विश्वविद्यालय में नौकरी हासिल की हुई है ।

हिमाचल प्रदेश के बरु साहिब में स्थापित निजी विश्वविद्यालय में जूलॉजी के सहायक प्रोफेसर के पद पर वर्ष 2008 -09 में कार्यरत दर्शाया कर अनुभव प्रमाण पत्र को सरदार पटेल विश्वविद्यालय में हुई प्रोफेसरों की नियुक्ति में संलग्न किया हुआ पाया गया है। यह जानकारी आरटीआई एक्टिविस्ट द्वारा जुटा कर इसे वॉटसेप सोशल मीडिया ग्रुप में शेयर कर डाली है।  लेकिन प्रदेश की तमाम जांच एजैंसियों को अधिक मेहनत करने की जरूरत ही नही रखी है ।

विश्वविद्यालय प्रशासन तथा प्रदेश सरकार पर लोकसभा चुनावों के दौरान यह संशय बना हुआ है कि पढ़े लिखे युवाओं के साथ को धोखा हुआ है उनकी आवाज किसी नेताओं द्वारा बुलंद नही की जा रही है जिसके चलते पढ़े लिखे युवाओं के आक्रोश का शिकार चुनावी परिणाम में भी देखने को मिल सकता है।

सरदार पटेल विश्वविद्यालय के अंतर्गत 46 कॉलेजों के हजारों विद्यार्थियों तथा उनके अभिभावकों की आवाज को सत्तापक्ष और विपक्ष के नेताओं द्वारा दवाई जा रही है।

आरटीआई एक्टिविस्ट द्वारा मामले का पिछले दो वर्षों से खुलासा किया हुआ है जिसका परिणाम विधानसभा सदन में भी कांग्रेस विधायक चंद्र शेखर द्वारा उठाया गया है बावजूद सरकार और जांच एजेंसियां अभी तक खामोश बैठी हुई है।

आरटीआई से प्राप्त की गई सूचना में खुलासा हुआ है कि उस निजी विश्वविद्यालय में जूलॉजी विभाग को वर्ष 2015 में शुरू किया गया जिसकी जानकारी विश्वविद्यालय द्वारा आरटीआई में जबाव दिया हुआ है। आरटीआई से यह भी खुलासा हुआ है कि जिस अनुभव प्रमाण पत्र को डीन साइंसेज द्वारा प्रमाणित कर मोहर लगाई गई है वैसा पद अभी तक उस विश्वविद्यालय में नही है।

निजी विश्वविद्यालय द्वारा आरटीआई के सवालों का जबाव देते हुए क्या लिखा हुआ है पढ़ कर हैरान कर देने वाला विषय सामने आया हुआ है ।

13 मार्च, 2024 के पत्र, 21 मार्च, 2024 को प्राप्त आरटीआई अधिनियम, 2005 के तहत सूचना के लिए आवेदन के संदर्भ में है।

प्रमाणपत्र इंगित करता है कि वह 12-08-2008 से 25-02-2009 तक इंटरनल में यूनिवर्सिटी में “सहायक प्रोफेसर (जूलॉजी)” के पद पर रहीं। सूचित किया जाता है कि जूलॉजी विभाग की स्थापना वर्ष 2015 में इटरनल यूनिवर्सिटी में की गई थी।

द्वितीय. इसके अलावा यह सूचित किया जाता है कि प्रमाणपत्र पर प्रमाणीकरण की आधिकारिक मुहर नहीं है।

iii. इसके अलावा, प्रमाणपत्र पर उल्लिखित “डीन साइंसेज” का पद इटरनल यूनिवर्सिटी की संगठनात्मक संरचना के अनुरूप नहीं है। इसके द्वारा सूचित किया जाता है कि विश्वविद्यालय के भीतर ऐसा कोई पद कभी मौजूद नहीं था।

जहां तक प्रमाण पत्र की प्रकृति का सवाल है कि यह फर्जी है या नहीं, उपरोक्त तथ्यों को ध्यान में रखते हुए प्रमाण पत्र की प्रकृति का सत्यापन किया जा सकता है।

यह कहा गया है कि ऐसे अनुभव प्रमाणपत्र जारी करने का सक्षम प्राधिकारी विश्वविद्यालय के कुलपति/प्रतिकुलपति के पास है और आवश्यकता पड़ने पर इसे रजिस्ट्रार, अतिरिक्त रजिस्ट्रार को सौंपा जा सकता है।

लेकिन सचाई यह है कि हिमाचल प्रदेश में के कई विश्वविद्यालयों में ऐसे फर्जी दस्तावेजों का खुलासा होने के बावजूद विश्वविद्यालयों के कुलपति , प्रतिकुलपति तथा जांच एजेंसियों द्वारा शिक्षा के गिरते स्तर को बचाने के लिए उचित कदम न उठाना कई सवालों को खड़ा करने का मौका दिया जा रहा है।

दूसरी तरफ यह भी है कि दस्तावेजों में कोई खामियां नही पाई जाती है तो ऐसे आरटीआई एक्टिविस्ट तथा अन्य लोगों पर भी भ्रांतियां फैलाने के मामले पर कार्यवाही होनी चाहिए।

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