सरकार अनजान है, विभाग जानबूझ कर खामोश है और देव भूमि बेनामीदारों के हाथ बिकता जा रहा है।
सरकार को चाहिए कि न्यायलय के रिटायर्ड जस्टिस और राजस्व अधिकारी शामिल कर एक कमीशन का गठन करें और इस मामले जॉच कर अरबों रुपए की संपति का खुआलासा करें।
सुभाष ठाकुर*******
“हिमाचल प्रदेश मुजारा और भूमि सुधार अधिनियम -1972” के चैप्टर -Xl में भूमि हस्तांतरण पर नियंत्रण रखने के लिए धारा 118 का विशेष प्रावधान इस लिए डाला गया है ताकि प्रदेश के किसानों को लैंडलैस होने से बचाया जा सके।
पर्यटन व बागवानी की दृष्टि से प्रदेश में हर कोई दूसरे प्रदेश के लोग हिमाचल प्रदेश में भूमि खरीदना चाहते हैं।
जब कि प्रदेश के किसानों के पास पहले ही, पहाड़ी क्षेत्र होने के नाते, कृषि योग्य भूमि कम है। बहुत सारे लोग हिमाचल प्रदेश में भूमि हीन थे, जिन को सरकार ने नौतोड़ भूमि दे कर रोजी रोटी कमाने के काबिल बनाया है।
भूमि को बचाए रखने के लिए प्रदेश सरकार ने धारा 118 का प्रावधान कर के उन लोगों के नाम भूमि हस्तांतरण नियतंत्रित कर दिया जो गैर कृषक हैं। कोई भी गैर कृषक व्यक्ति हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि पर किसी भी रुप में न मालिक बन सकता और न कब्ज़ा कर सकता है।
लेकिन सरकार की ढील और विभाग की लापरवाही के साथ साथ राजस्व विभाग के कर्मचारियों से लेकर आलाअधिकारियों तक बेनामी भूमि सौदों की काली कमाई का हिसा जब पहुंचाया जाता है तब गैर कृषक भी हिमाचली किसान का प्रमाण पत्र हासिल करता है। वहीं प्रदेश सरकार के नेताओं और मंत्रियों के हाथ बेनामी सौदों की डील में रंगे जाते हैं तो धारा 118 की अनुमति भी नियमन को ताक पर रख कर दी जाती है।
हिमाचल प्रदेश में बड़े बड़े धनासेठों का खेल हिमाचल प्रदेश के पर्यटन स्थलों के आसपास बड़े बड़े होटलों का निर्माण कई बेनामी सौदों से रंग चुका है । धारा 118 की अनुमति नियमों के खिलाफ तो कहीं धनासेठों द्वारा हिमाचल प्रदेश के लोगों के नाम अपनी काली कमाई को होटल निर्माण तथा बेनामी प्रॉपर्टी का खुला खेल चलाया हुआ है।
प्रॉपर्टी डीलर बिना लाइसेंस बनाए हुए प्रदेश सरकार के नियमों तथा कानूनी प्रक्रिया की धज्जियां उड़ा रहे हैं
भारत में एक लाइसेंस प्राप्त रियल एस्टेट एजेंट बनने के लिए रियल एस्टेट (रेगुलेशन एंड डेवेलपमेंट एक्ट), 2016 (RERA) के तहत रजिस्टर करना और एक प्रोफेशनल लाइसेंस हासिल करना जरूरी है।
हिमाचल प्रदेश की अधिकतम किसानों की योग्य भूमि को गरीबों हाथों से बिना लाइसेंस से भूमि बिक्रेता के कार्य में सालों से व्यस्त हैं उन्हें प्रदेश सरकार , तथा साकार की जांच एजेंसियां खामोश बैठ कर प्रदेश को धनासेठों के हाथों में बिक्री होने दिया जा रहा है।
बिना लाइसेंस के यह प्रोपर्टी डीलरों द्वारा
प्रदेश के हर शहर , ब्लॉकों तथा ग्रामीण क्षेत्रों में यही प्रॉपर्टी डीलर हिमाचल प्रदेश की कृषि योग्य भूमि को बड़े बड़े धन्नासेठों को करोड़ों अरबों रुपए में बिक्री किया जा रहा है।
आज हिमाचल प्रदेश में कृषि भूमि का एक चौथाई से ज्यादा भाग गैर कृषक बेनामी दारों के हाथ जा चुका है । क्योंकि ये लोग हिमाचल प्रदेश में सीधे तौर पर ज़मीन ख़रीद नहीं सकते इसलिए इन्होने पहले प्रदेश के किसी स्थाई कृषक को काबू किया। उसे पैसा दिया कि वह उन का मनचाहा स्ट्रक्चर अपनी भूमि पर बना दे। जब स्ट्रक्चर बन जाता है तो बाहर से आया व्यक्ति उस स्ट्रक्चर को एक साल की लीज के आधार पर उस कृषक व्यक्ति से ले लेता है और उस पर कब्ज़ा कर के आस पास की सारी भूमि को बेनामी तौर पर गैर पंजीकृत समझौते के आधार पर ख़रीद लेता है। एक साल की लीज पंजीकृत करना जरुरी नहीं है। अतः उसी स्थाई कृषक भूमि मालिक को बेनामीदार उस संपति का संरक्षक बना कर नौकर रख लेता है और दोनों का धंधा चल पड़ता है। जब कोई पूछे कि यह किस का घर या कारोबार है, तो नाम यहां के स्थाई व्यक्ति का बताया जाता है, क्योंकि रेकॉर्ड में उसी का नाम रहने दिया जाता है।
प्रदेश के लगभग सभी पर्यटन स्थलों , सड़क के किनारे तथा उद्योगिक क्षेत्र के समीप अधिकतर भूमि बाहर के बेनामीदारोंं ने उपरोक्त तरीके से ख़रीद ली है और यहां के कृषक अपनी ही भूमि पर नौकर बनते जा रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि राजस्व विभाग इस घटना से अवगत नहीं है। लेकिन कुछ कर्मचारी और अधिकारी बेनामीदारों और प्रॉपर्टी डीलर्स के हाथों खेल रहे हैं और कुछ मूक दर्शक बने हैं। जिस कारण देवभूमि बेनामी तौर पर बिकती जा रही है।
सरकार को चाहिए कि तुरन्त एक कमीशन का गठन करे जिस में तटस्थ उच्च न्यायलय के रिटायर्ड जस्टिस और राजस्व अधिकारी शामिल हो और पूरे प्रदेश में इस की जॉच की जाए कि कौन सी भूमि किस के कब्जे में हैं। इस प्रकार का कमीशन सरकार ने पहले भी जस्टिस रुप सिंह ठाकुर की अध्यक्षता में बनाया था, जिस की रिपोर्ट के आधार बहुत सारी संपत्तियां जब्त हुई थी। एक बार फिर इसी प्रकार की कार्यवाही करने का समय आ गया है।