कर्मचारी हितों की हो रक्षा , किसी भी राज्य सरकार का कार्यकाल न हो बाधित बने सख्त कानून

कर्मचारी हितों व सरकार के विभागीय व्यवस्थाओं को सुदृढ़ बनाने के लिए सदन में एक बिल पास कर सख्त कानून बनाए

सुभाष ठाकुर*******

कर्मचारी नेताओं की गुटबाजी प्रदेश में हर बार सरकार पर भारी पड़ती जा रही है ।

सरकार को चाहिए कि कमर्चारियों के हितों की मांगों को पूरा वैसे ही करना चाहिए जैसे 5 वर्षों के लिए चुने हुए विद्यायकों को हर सुविधा प्रदान की जाती है उन्हें भी जरूर देनी चाहिए ।

प्रदेश सरकार को यह भी करना चाहिए सदन में कर्मचारियों के लिए एक बिल लाकर कानून बनाना चाहिए कि प्रदेश सरकार के किसी भी विभाग का कोई भी संगठन साल के दो मीटिंग के सिवाय कोई अनुमति नहीं देनी चाहिए।

प्रदेश के सभी कर्मचारियों को किसी भी राजनीतिक ,विभागीय संगठन के जनसमूह में शामिल नहीं होने के सख्ती से कानून बनाने चाहिए।

प्रदेश सरकार को सरकारी विभागों में आउटसोर्स पर भर्ती नहीं करनी चाहिए ।जब सरकार ही अपनी जनता का शोषण करती रहेगी तो प्रदेश सरकार की मुश्किलें ऐसे ही धरने प्रदर्शन के झमेलों में पांच सालों का कार्यकाल व्यतीत होता जाएगा ।प्रदेश के हितों को पीछे छोड़ कर राजनीतिक दलों से जुड़े हुए नेताओं और सरकार के विभिन्न विभागीय नेताओं की राजनीतिक रोटियां पकती रहेगी और आमजनता इन दोनों के बीच हमेशा पिसती रहेगी।

युवाओं के नौकरियों के टेस्ट निकल नहीं रहे युवाओं की उम्र बढ़ती जा रही है।

कर्मचारी को चाहिए कि अपने विभाग की उपलब्धियों के लिए अपनी सेवाएं देने के लिए अपनी उपस्थिति दिन के दो बार बायोमीट्रिक प्रणाली से दर्ज करें। जिसे माननीय उच्च न्यायलय के आदेशों का पालन भी होगा।

सरकार के कई विभागों में कर्मचारियों द्वारा अपनी उपस्थिति बायोमीट्रिक प्रणाली से दर्ज करना अनिवार्य किया हुआ है और कर भी रहे हैं ।

विभाग के जिस पद के लिए जिन कर्मचारियों का चयन हुआ है

उस विभाग में उनकी सेवा शतप्रतिशत उपस्थिति के साथ उनकी कार्य की समीक्षा भी होनी चाहिए ,तभी सरकार द्वारा कर्मचारियों को दी जाने वाली सभी देनदारियों के हकदार माने जाने चाहिए । कई विभागों के कर्मचारी नेताओं में वो जोश तभी दिखता है, जब सत्ता में विराजमान नेताओं और मंत्रियों के गलत और अवैध कार्यों को अमीलजामा ऐसे कर्मचारियों द्वारा पहना कर नेताओं की छवी को भी दागदार बना दिया जाता है।कर्मचारियों के तबादले पैसों की वसूली कर अपनी ड्यूटी को छोड़ कर करते हैं।

यही कारण है कि जिस पद के लिए जो कर्मचारी नियुक्त किया होता है उस विभाग के आलाधिकारियों में इतनी शक्ति नहीं बची है कि वह कर्मचारियों के अधिकार क्षेत्र से रूबरू करवा पाए।

विभाग अधिकारी कर्मचारी नेताओं के आगे खुद कनिष्ठ कर्मचारी के आगे झुकने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। क्योंकि नेताओं और मंत्रियों के करीबी होने वाले कर्मचारी द्वारा अपने ही बॉस की कई बार तब क्लास ली जाती है, जब मंत्रियों के कार्यालय पहुंच कर अपने ही विभाग के आलाधिकारियों को फोन कर बोला जाता है, मैं मंत्री जी के साथ बैठा हूं वो मंत्री जी पूछ रहे हैं वो काम क्यों नहीं हो रहा है। ऐसे में अधिकारी की हवा कर्मचारी द्वारा निकाली जा रही है।

मुख्यमंत्री को चाहिए कि सदन में एक बिल पास कर दोनों ही तरफ की शर्तों पर कार्य कर प्रदेश को प्रगतिशील बनाने के लिए एक सख्त कानून बनाना होगा।

अन्यथा भविष्य में भी प्रदेश सरकार और मुख्यमंत्री को हमेशा कर्मचारियों के दबाव ही कार्य करना पड़ेगा।

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