रिपोर्ट : तन्जिन वंगज्ञाल रुमबाह (लाहौल-स्पीति)
हिमाचल प्रदेश के जनजातीय क्षेत्र लाहौल स्पीती के काजा उपमंडल स्पीति घाटी के लोगों को मनरेगा में रोजगार कमाने के लिए तरस रहे हैं।
केंद्र व राज्य सरकार ने वैसे तो गरीबों के विकास के लिए कई प्रकार की योजनाएं चलाई हैं लेकिन अधिकतर ग्रामीण इन योजनाओं से वंचित रह जाते हैं। जनजातीय क्षेत्र की स्पीति घाटी keenभौगोलिक स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण है। शीत मरुस्थल कहे जाने वाले दुर्गम व पिछड़े जनजातीय स्पीति घाटी सर्दियों में छह से सात महीने तक बर्फ से घिरा रहता है, जिससे स्पीति घाटी अपने ही जिला मुख्यालय केलांग तथा शेष दुनिया से संपर्क कटा रहता है। स्पीति घाटी में जो भी विकासत्मक गतिविधियां तथा कामकाज है गर्मियों के कुछ महीने तक सीमित है। सरकार द्वारा चलाई मनरेगा योजना का लाभ लेने के लिए घाटी के गरीब ग्रामीणों को कई महीनों तक दफ्तरों के चक्कर काटने के बावजूद कार्य को ठंडे बस्ते में रख दिया जाता है और फाइलों में बंद होकर कार्यवाही नहीं की जाती है। रोचक ये बात है कि स्पीती में अधिकांश बेबस जनता अपने हक हुकूक के लिए सरकार व शासन प्रशासन को आवाज़ उठाने से कतराते हैं।
सरकार अगर कोई योजना बनाती भी है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गरीब परिवारों को उससे लाभ हो रहा है या नहीं,
केंद्र सरकार द्वारा चलाई जा रही मनरेगा योजना के तहत ग्रामीणों व श्रमिकों को एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिन का रोजगार प्रदान करने के लिए इस योजना का आरंभ किया गया था। सरकार अगर कोई योजना बनाती भी है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गरीब परिवारों को उससे लाभ हो रहा है या नहीं। मनरेगा के निराशाजनक प्रदर्शन का मुख्य कारण यह है कि ग्रामीण भारत के गरीब इलाकों में कई लोग जो इस योजना के तहत काम करना चाहते हैं, उन्हें यह नहीं मिल पाता है। मनरेगा की वास्तविकता को उसकी भव्य दृष्टि से मिलाने के लिए, गरीब लोगों को योजना के तहत उनके अधिकारों और अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक बनाने की आवश्यकता है, और आपूर्ति पक्ष को और अधिक उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता है।