क्रशरो की रोक से पंचायती राज संस्थाओं के विकास कार्य ठप , वहीं प्राकृतिक संतुलित के लिए बेहतर कदम

नूरपुर,सुखदेव सिंह:- अवैध खनन को लेकर उपजे विवाद को शांत करने के लिए प्रदेश सरकार ने स्टोन क्रेशरों को बंद करके सराहनीय फैसला लिया था। व्यवस्था परिवर्तन करने वाली मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सूक्खू की कांग्रेस सरकार के इस फैसले की  जनता ने खूब प्रशंसा की है।

प्रदेश में हालत ऐसे बन चुके कि स्टोन क्रेशर बंद होने पर भाजपा,कांग्रेस के कुछेक नेता वेहद आहत नजर आ रहे हैँ। स्टोन क्रेशर बंद पड़े होने के कारण विकास कार्य आजकल अवरुद्ध पड़े हुए हैं । प्रदेश सरकार आपदा में बेघर हुए लोगों को नया आशियाना बनाने के लिए सात लाख रुपये दिए जाने का फरमान जारी कर चुकी हैँ।भवन निर्माण के लिए रेत, बजरी और पत्थर कहाँ से लाए आज बड़ा सवाल है।

मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह की सरकार द्वारा  स्टोन क्रशरों को बंद करने का यह लिया फैसला प्रकृति सरंक्षण हित में लिया हुआ है।

स्टोन क्रेशरों के बिजली कनेक्शन काटने में सरकार ने जिस तरह तत्परता दिखाई।ठीक उसी तरह अब बंद पड़े स्टोन क्रेशरों को दोबारा शुरु करवाना भी प्रदेश सरकार के लिए बहुत बड़ी चुनौती बन चुकी है।

बरसात में हुई भारी बारिश प्रदेश में आई आपदा के चलते 450 से अधिक लोग मौत का ग्रास बने ।हिमाचल प्रदेश में हुई वरसात इस बार जानलेवा क्यों बनी  मंथन करने की अधिक जरूरत है।

प्रदेश में अस्थाई तौर पर स्टोन क्रेशर बंद होने से बेरोजगारी और महंगाई की मार आम जनता पर पड़ रही है नेताओं द्वारा यही राग अलापा भी जा रहा है। प्रदेश में शिक्षित बेरोजगारों का आंकड़ा 12 लाख से अधिक पहुँचने के वावजूद भी प्रदेश की सत्ता पर काबिज नेतृत्व के पास कोई स्थाई हल नहीं निकाला जा सका है।

हिमाचल प्रदेश में लगे 128 स्टोन क्रेशरों के आखिर मालिक कौन आज बड़ा सवाल है ? राजनीति में अपना रसुख रखने बाले ही प्राकृति  का जमकर दोहन करें तो इसका विपरीत असर जनता पर पड़ेगा ।  प्राकृति को सहेजकर ही प्राकृतिक आपदाओं से कुछ हद तक देवभूमि को बचाया जा सकता है। हिमाचल प्रदेश में आई आपदा  ने इस कदर कहर बरसाया की आम लोगों का जीवन ही अस्त व्यस्त होकर रह गया है।

कर्जे के बोझ से हिचकोले खाती प्रदेश सरकार  को प्राकृति ने भी कुठाराघात करके उसे  हजारों करोड़ो रुपयों का अतिरिक्त बोझ डाल दिया है । हर साल इस तरह ही प्रकृति अपना रौद्र रूप धारण करके ऐसा तांडव मचाती रही तो निकटम भबिष्य में हिमाचल प्रदेश का अस्तित्व ही खतरे में पड़ सकता है।

प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण हिमाचल प्रदेश को धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से मजबूत बनाये जाने के प्रयास भी सरकार लगातार प्रयास कर रही है।

भारी बरसात में हुए भूस्लखान से प्रदेश की अधिकांश सड़कें  क्षतिग्रस्त हो चुकी थी। प्रदेश सरकार द्वारा तेजगति से सड़कों को बहाल कर दिया हुआ है लेकिन कुछ सड़कों की मुरामत की जा रही है ।

पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन, राष्ट्रीय राजमार्गों, पुलों,ढंगों का पानी में बहने से कई इंसानी जिंदगियों को अपनी जान गवानी पड़ी,

मौसम में अचानक बदलाव आने से पहाड़ी राज्यों की मुश्किलें बढ़ती ही जा रही हैं। ऐसा माना जा रहा कि यूरोपीय देशों में ज्यादा गर्मी पढ़ने का असर अब दक्षिण देशों पर पड़ना शुरू हो चुका है।इन देशों में आसमान पर घने बादलों ने इस कदर डेरा जमा रखा कि वह कभी भी बरसकर जनता के लिए परेशानियां खड़ी कर सकते हैं।आगामी भविष्य में पहाड़ी राज्यों की जनता की समस्याएँ कम होने की बजाए बढ़ने के आसार ज्यादा लगते हैं।  बरसात का मौसम पर्यटन के लिहाज से बेहतर माना जाता रहा है।अब बरसात की भारी बाढ़ लोगों के लिए कई तरह की परेशानियां पैदा करती जा रही है।

गर्मियों में शिक्षण संस्थानो की छुट्टियां बिताने के लिए हिमाचल प्रदेश के अनेकों धार्मिक पर्यटक स्थलों पर  देश दुनिया  के करोड़ों पर्यटक हिमाचल घूमने आया करते हैं लेकिन बरसात में हुई भारी बारिश की तबाही से पर्यटकों में खोफ का बना हुआ है ।

हिमाचल प्रदेश के जंगलों पर अत्यधिक कुल्हाड़ी चलने पर पहाड़ अब खोखले बनते जा रहे हैं। सर्वोच्च न्यायालय के प्रतिबंध के बाबजुद भी जंगलों का मिटता अस्तित्व बचाने में हम नाकाम चल रहे हैं। पौधारोपण हम सिर्फ दिखाबे के लिए साल में एक बार मैदानी इलाकों में करके मीडिया में सुर्खियां बटोर रहे, जंगलों में मौजूद कांटेदार झाड़ियों के बीच कौन पौधा लगाए यह वन विभाग के आलाधिकारियों को ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों से रिपोर्ट लेकर पौधारोपण का कार्य अमल में लाना चाहिए ।

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