गेहूं की वैज्ञानिक विधि से खेती पर लगाया गया प्रदर्शन प्लॉट
सुभाष ठाकुर*******
चौहार घाटी की सभी 14 पंचायतों के किसानों और बागवानों को जागरूक करने के लिए जिला अधिकारियों को कागजी कार्यवाही तक सीमित नहीं रहना होगा । घाटी के ग्रामीण क्षेत्रों के सभी किसानों और बागवानों की आर्थिकी तब तक मजबूत नहीं होगी जब तक जिला कृषि अधिकारियों द्वारा केंद्रीय कृषि मृदा स्वास्थ्य योजना के माध्यम से किसानों और बागवानों की खेती की मिट्टी की जांच नहीं की जाती है।
चौहार घाटी के अधिकांश किसानों और बागवानों को कृषि विभाग द्वारा मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना की जानकारी तक नहीं दी गई है मात्र कागजों की खाना पूर्ति कर किसानों की फसल साल डर साल घटती जा रही है। कृषि अधिकारी को फील्ड रिपोर्ट की जांच कर मृदा योजना को बढ़ावा दे कर किसानों को केंद्रीय कृषि योजना का लाभ देना चाहिए।
हिमाचल प्रदेश फसल विविधीकरण प्रोत्साहन परियोजना (चरण–II) के तहत खंड परियोजना प्रबंधक इकाई मंडी द्वारा उप परियोजना पधर के चौहार घाटी की सनवाड़ पंचायत के आरंग गांव में आज ओरिएंटेशन और जरूरत के आकलन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया गया। कार्यक्रम के दौरान किसानों को परियोजना के उद्देश्यों, नियमों, कार्यप्रणाली तथा उनकी भूमिकाओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य यह पता लगाना रहा कि किसानों को किन क्षेत्रों में सुधार या तकनीकी सहायता की आवश्यकता है।

कार्यक्रम के साथ ही परियोजना के पी.एम.सी. विशेषज्ञ डॉ. पी.एल. शर्मा की उपस्थिति में गेहूं की वैज्ञानिक पद्धति से खेती पर एक प्रदर्शन प्लॉट लगाया गया। उन्होंने किसानों को गेहूं की फसल उगाने की उन्नत विधियों और नई तकनीकों के बारे में जानकारी दी। प्रदर्शन प्लॉट का उद्देश्य किसानों को आधुनिक कृषि पद्धतियों से परिचित कराना और उन्हें व्यवहारिक अनुभव प्रदान करना रहा।
जिला कृषि विभाग के अधिकारियों को जानकारी मिल चुकी है कि चौहार घाटी के किसानों को की जागरूक करने के लिए घाटी के किसानों को जागरूक करने लगा है । कृषि विभाग के अधिकारियों की जिम्मेवारी रहती है कि केंद्र सरकार की सभी कृषि योजनाओं को किसानों के लिए धरातल में उतराना चाहिए था लेकिन ग्रामीण क्षेत्र के किसानों को आज तक मृदा कार्ड की जानकारी तक जिला मंडी कृषि अधिकारियों द्वारा नही दी गई है जिस मृदा कार्ड से किसानों की खेती की मिट्टी के स्वास्थ्य की जांच कर मालूम होता है कि किस खेत की मिटी को किन पोशाक तत्वों की जरूरत है और किसानों की फसल में लहराने लगे।
इस अवसर पर डॉ. राजेश कुमार, खंड परियोजना प्रबंधक, डॉ. हंसराज, कृषि विकास अधिकारी सहित जायका परियोजना के अन्य कर्मचारी भी उपस्थित रहे।
