कांग्रेस संगठन का मिडिया मूर्छित अवस्था क्यों ?

सुभाष ठाकुर******

हिमाचल प्रदेश में यही सब चलता रहा तो कांग्रेस की मुश्किल और ज्यादा बढ़ना तय है।

कांग्रेस संगठन और सरकार के मिडिया विभाग में नियुक्त लोगों की कार्यप्रणाली से कांग्रेस के स्मृतकों और नई पीढ़ी के मतदाताओं को

पार्टी की विचारधारा और कांग्रेस पार्टी की केंद्र तथा राज्यों में पूर्व में रही सरकारों का इतिहास पार्टी के समर्थक भूल जाएंगे। क्योंकि सभी पद लेकर अपने व्यक्तिगत कारोबार तक सीमित हो कर रह चुके हैं यही चर्चा प्रदेश के हर जिले में हो रही है किसी ने इसे सार्वजनिक नही किया लेकिन मैं बतौर अमर ज्वाला संपादक इस लिए कर रहा हूं कि मुझे जो वर्तमान में घटित हो रहा है या होने वाला है उसका अवलोकन कर सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र से जुड़े हुए संगठनों को उनके बेहतरी कदमों के लिए सचेत करना मेरा मूल कर्तव्य बनता है।

देश सोशल मिडिया के विभिन्न प्लेटफार्मों के माध्यम से जैसे वॉटसेप यूनिवर्सिटी में जो नए मतदाताओं को परोसा जा रहा है, उस से कांग्रेस पार्टी का शीर्ष नेतृत्व भले ही इसकी जानकारी रखता हो , लेकिन वह यह भूल चुका है कि उन्हें खुद को पार्टी की मजबूती के लिए कांग्रेस को जमीनी सत्तर पर कैसे अपनी मजबूत पकड़ बनानी होगी।

शीर्ष नेतृत्व राष्ट्रीय मीडिया के साथ प्रेस वार्ता कर अपना पक्ष तो रखता जा रहा है देश की समस्याओं की जानकारी सांझा कर रहा है। सवाल जबाव कर रहा है। लेकिन पार्टी कैसे और किस कमी के कारण अपनी मजबूत पकड़ नही बना पा रही है उस पर ध्यान ही नही दिया जा रहा है। वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार ने मीडिया के एक वर्ग को गोदी मिडिया का नामकरण किया हुआ है कांग्रेस उसी शब्द से पार्टी का प्रचार कर रही है जबकि किसी भी राजनीतिक दल को अपने प्रचार के लिए मीडिया के सहयोग की सबसे अधिक जरूरत रहती है। जिस भी राजनीतिक दल ने ऊंचाइयां पूर्व में या वर्तमान में हासिल की हुई है उसमें मीडिया की 100 प्रतिशत भूमिका रहती है।

राजनीतिक दलों का प्रचार प्रसार आम जन जन तक पहुंचने का एक मात्र मूलमंत्र होता है। जिसका प्रचार प्रसार बेहतर है वही देश दुनियां में राजनीतिक क्षेत्र में अपनी सत्ता हासिल करता रहा है।

कांग्रेस वर्तमान दौर में प्रचार प्रसार में बहुत पिछड़ चुकी है जिसका खामियाजा पिछले कई वर्षों से भुक्तना भी पड़ रहा है।

कांग्रेस फिर से देश में मजबूती के साथ वापसी कर सकती है । लेकिन उसके लिए पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को देश के सभी राज्यों में सिर्फ मीडिया विंग में सुधार करना होगा । जिसमें किसी भी नेताओं के रिश्तेदारों तथा पार्टी में व्यक्ति विशेष नेता का करीबी मिडिया विभाग के पदों से दूर रखना होगा ।

पार्टी के मीडिया विभाग में लंबे समय से अनुभवी पत्रकारों को जिन्हे राजनीतिक समझ बेहतर हो प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में आपसी समन्वय उस क्षेत्र में रखने वालों को यह जिम्मेवारी सौंपनी चाहिए।

राज्यों में संगठन के पदों पर बैठे हुए मिडिया के पदाधिकारी देश के आम लोकसभा चुनावों के दौरान भी गायब है किसी को मालूम नही कि करना क्या है लेकिन बीजेपी सबसे तेजी से यह कार्य कर देश में अपनी मजबूती बना कर चली हुई है।

हिमाचल में कांग्रेस का संगठन और सरकार का मिडिया विंग मूर्छित अस्वथा में जा चुका है।

कांग्रेस के मिडिया विंग की कार्यप्रणाली पर नजर दौड़ाई जाए तो ।

प्रदेश में 100 में से 3 लोग भी नही मिलेंगे कांग्रेस के मिडिया विंग की प्रशंसा करने वाले।

कांग्रेस हाईकमान को चाहिए कि पार्टी में मीडिया विभाग एक ऐसा विभाग है जो पार्टी की दिशा और दशा दिखाता है । लेकिन कांग्रेस में काफी वर्षों से उल्टा दिखाई दिखाई देते हुए मिडिया विभाग को प्रवक्ता की जगह ठेकेदार , सपलायर , उद्यिगोती, जैसे लोगों को भर्ती कर कांग्रेस की जड़ों में दीमक लगा रखी हुई है।

कांग्रेस पार्टी को चाहिए था कि पार्टी के मिडिया विभाग को देश के हर राज्यों में प्रखर प्रवक्ता , पत्रकारिता का लंबा अनुभव जिन्हे हों और राजनीतिक क्षेत्र की बेहतर समझ रखने वालों तथा प्रिंट मीडिया तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के जर्नलिस्टों की पहचान रखने वालों को पार्टी के मिडिया विभाग में बिठाया जाए तो पार्टी की दशा और दिशा में सुधार आ सकता है ।

नेताओं के वायक्ति विशेष लोगों को पार्टी संगठन के मीडिया विभाग के पदों पर बिठा कर ठेकेदार, सप्लायर, उद्योग मालिक तथा अपने निजी व्यवसाय में संलिप्त लोगों के कारण पार्टी की यह देश देश भर में बनी हुई है।

हिमाचल में कांग्रेस की सरकार में चल रही है। शिमला के सिवाय प्रदेश के अन्य जिलों में किसी पत्रकारों से कोई संवाद नही , कोई प्रेस नोट नही कोई प्रवक्ता प्रेस वार्ता के लिए मीडिया के साथ संवाद के लिए नही , सोशल मिडिया चैनलों तक सीमित हुई कांग्रेस बहुत मुश्किल में दिखाई देने लगे हैं आगामी परिणाम ।

प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकारों से दूरियां मिडिया कर्मियों से दूरियां बना कर संवाद तो कोसो दूर की बात लेकिन एक टेलीफोन से संपर्क तक नही ।

अब नेताओं के करीबी रिश्तेदार, ठेकेदार, व्यापारी उद्योग मालिक एक दो के नाम पर होंगे चुनावी प्रचार में स्वार परिणाम फिर वही जो जमीनी सत्तर पर मेहनत करेगा वही सत्ता की गद्दी पर बैठेगा।

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