जनता के टैस्क से मिल रहे लाखों रुपए के वेतन से विभागीय सेवा नहीं ,बल्कि वर्षों से हो रही नेताओं चाकरी।
सुभाष ठाकुर*******
जनता से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से वसूले जा रहे अरबों के टैक्स से केंद्र तथा राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों में कार्यरत अधिकारियों और कर्मचारियों को लाखों रुपए का वेतन तथा पैंशन प्राप्त हो रही है।
आमजनता के टैक्स के पैसों का दुरपयोग न हों यह राज्य तथा केंद्र सरकार की जिम्मेवारी रहती है ।
प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की व्यवस्था परिवर्तन करने वाली कांग्रेस सरकार से आम जनता को बहुत उम्मीदें है। लेकिन वन विभाग के आलाधिकारियों की कार्यप्रणाली देख कर ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की छवि को धूमिल करने वाले यह वन विभाग के आलाधिकारी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहते हैं।
प्रदेश का एक मात्र वन विभाग हर वर्ष हिमाचल प्रदेश को विभिन्न क्षेत्रों से अरबों रुपए की आमदनी देता है ।
प्रदेश के खूबसूरत जंगलों के कारण पर्यावरण की सुंदरता से मानव जीवन तो सुगम होता है, जंगलों के हरे भरे रहने से स्वच्छ पेय जल पानी, पर्यटकों की आवाजाही , बेरोजगारों को रोजगार, बिरोजा, वेशकीमती जड़ी बूटियां , इमारती लकड़ी , बालन इत्यादि से प्रदेश सरकार को वन विभाग से सबसे अधिक कमाई होती है।
विडंबना यह है कि वन विभाग के चंद आलाधिकारियों द्वारा अपनी विभागीय सेवाएं कम तो राजनीति में उनकी अधिक सक्रियता देखी जाती रही ।
पूर्व की बीजेपी सरकार के कार्यकाल में मंडी सर्कल में कार्यरत एक अरण्यपाल अधिकारी द्वारा ढांगसीधार के पार्क निर्माण व कांगनी धार में बने हेलीपैड निर्माण बिना वन विभाग की अनुमति से सैकड़ों पेड़ों को भूमिगत किया गया।
वहीं बीते वर्ष भारी बारिश के दौरान थुनाग बाजार में मलबे में ट्रकों के हिसाब से आई लकड़ियों की जांच को कैसे प्रभावित किया प्रदेश भर में वन अधिकारी खूब चर्चित था कि नेता प्रतिपक्ष के बचाव के लिए क्या क्या किया गया।
वर्तमान में उन्हीं वन अधिकारी के क्षेत्राधिकार में चीड़ के जंगलों को बेरहमी से छलनी कर सूखने की कगार पर हजारों पेड़ों को कर डाला है।
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मंडी जिला के नाचन वन सर्कल में ज्योग व पठान के बीच में राज्य वन निगम द्वारा आवंटित बिरोजा निकासी
के लिए अलॉट संख्या 37 जंगल में लगभग 6400 चीड़ के पेड़ों को बेरहमी से चारों तरह से छिला हुआ है और दो तीन कुपियां बिरोजा निकासी के लिए पेड़ में लगाई हुई है।
अमर ज्वाला ने इस सारे मामले पर डीएफओ नाचन से बात की गई तो उन्होंने पहले तो कहा कि यह सुकेत के डीएफओ के अधिकार क्षेत्र में आता है और बोले कि मैं अभी मीटिंग में हूं ।
डीएफओ को उनके वाटसेप पर संदेश दिया कि जब मीटिंग से फ्री होंगे तो मामले की जानकारी दें।
लेकिन डीएफओ द्वारा कोई जानकारी नहीं दी ।
शनिवार को लागभाह 7 बजे शाम को डीएफओ नाचन को फोन कर बोला गया कि अमर ज्वाला मामले से संबंधित आपका बयान चाहते हैं। लेकिन उन्होंने साफ इनकार किया कि मेरा कोई बयान नहीं है
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*वन विभाग बोर होल की तकनीक क्यों नहीं अपनाते?*
राज्य वन निगम तथा वन अधिकारियों द्वारा जंगलों के रखाव के लिए बिरोजा निकासी के लिए ठेकेदारों को बोर होल तकनीक से क्यों नहीं आदेश जारी किए जाते। क्योंकि बोर होल तकनीक नौनी विश्वविद्यालय के वन विभाग के प्रोफेसरों द्वारा वर्ष 2018 में विकसित हो चुकी है।
जंगलों से चीड़ के पेड़ों से आज भी बेरहमी से छिल कर बिरोजा निकासी की जाती है।
डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नोनी सोलन के वन उत्पादन विभाग ने बिरोजा निकासी की नई तकनीक बोर होल के नाम से विकसित की हुई है। विश्वविद्यालय द्वारा विकसित की हुई नई तकनीक से पेड़ को कोई नुकसान नहीं होता है और नहीं सूखता है । यही नहीं चीड़ के पेड़ों को आग से भी बचाव होता है। क्योंकि जब बिरोजा निकासी के लिए पेड़ों को बेरहमी से छिला जाता है तो पेड़ पर बिरोजा चिपका रहता है और आग लगने पर वह छिला हुआ पेड़ जल्दी आग को पकड़ता है ।
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*क्या है बोर होल की नई तकनीक* ?
बोर होल एक तकनीक से बिरोजा निकालने के लिए चीड़ के पेड़ में बोर से छेद किया जाता है।
होल में एक पाईप लगा कर उसमें एक छोर पर पॉलीथिन बांध कर बंद रखा जाता है। बोर होल से बिरोजा पाईप के भीतर बिरोजा पॉलीथिन में भर जाता है और बिरोजा बिल्कुल साफ भी रहता है।