अमर ज्वाला: काजा
स्पीती के विभिन्न ग्राम पंचायतों में पिछले दस महीनों से विकास कार्य ठप पड़ा हुआ है।
ग्राम सभा की बैठक भी पिछले कई महीनों से नहीं हुई है। स्पीती के आमजनमानस पंचायत के कर्मचारी के अधिकारियों से नाराज हैं। बता दें कि जनजातीय घाटी का भौगोलिक स्थिति काफी चुनौतीपूर्ण है। शीत मरुस्थल कहे जाने वाले दुर्गम व पिछड़े जनजातीय स्पीति घाटी सर्दियों में छह से सात महीने तक बर्फ से घिरा रहता है, जिससे स्पीति घाटी अपने ही जिला मुख्यालय केलांग तथा शेष दुनिया से संपर्क कटा रहता है। स्पीति घाटी में जो भी विकासत्मक गतिविधियां तथा कामकाज है गर्मियों के कुछ महीने तक सीमित है। स्पीती घाटी के विभिन्न पंचायतों के ग्रामीणों का कहना है कि ग्राम सभा की बैठक नहीं होने से गांव के विकास संबंधी विषयों पर चर्चा नहीं कर पा रहे हैं और न ही पंचायत के कर्मचारी उन्हें कार्याें का लेखा-जोखा बता रहे हैं। सरकार ने वैसे तो गरीबों के विकास के लिए कई प्रकार की योजनाएं चलाई हैं लेकिन हिमाचल प्रदेश के जनजातीय जिला लाहौल-स्पीति सिथ्त स्पीति उपमंडल में अमूमन गरीब परिवार आज भी सरकार के जनकल्याणकारी योजनाएं व पंचायत संबंधी विकास कार्य योजनाओं से वंचित हैं। दुर्गम क्षेत्र स्पीती घाटी में जहां बहुत सारे गरीब परिवारों को मनरेगा योजनाओं का आवश्यकता है उन्हें योजनाओं का लाभ नहीं मिल रहा है। मनरेगा योजना का कार्य के लिए आवेदन के लिए गरीब व जरूरतमंद लोगों को महीनों से कई मर्तबा दफ्तरों के चक्कर काटना पड़ता है बावजूद बावजूद गरीब जरूरतमंद लोगों के कार्य फाइलों को ठंडे बस्ते में रख दिया है। सरकार अगर कोई योजना बनाती भी है तो उसे यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि गरीब परिवारों को उससे लाभ हो रहा है या नहीं। मनरेगा के निराशाजनक प्रदर्शन का मुख्य कारण यह है कि ग्रामीण भारत के गरीब इलाकों में कई लोग जो इस योजना के तहत काम करना चाहते हैं, उन्हें यह नहीं मिल पाता है। मनरेगा की वास्तविकता को उसकी भव्य दृष्टि से मिलाने के लिए, गरीब लोगों को योजना के तहत उनके अधिकारों और अधिकारों के बारे में अधिक जागरूक बनाने की आवश्यकता है, और आपूर्ति पक्ष को और अधिक उत्तरदायी बनाने की आवश्यकता है।