मण्डी के राजाओं का 1278 से 1916 के इतिहास के बीच देवता हुरंग नारायण ने किस राजा को पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दे कर किया पूरा, वंश को बढ़ाया

वोगल तथा हुचिसन के शब्दों में मण्डी के राजाओं का इतिहास

मण्डी रियासत के इतिहास को जानने के स्त्रोत प्रमुखतः स्मारक, सिक्के, अभिलेख

एवं सुप्रसिद्ध लेखकों की पुस्तके है। सरदार हरदयाल की उर्दू पुस्तक “मजमां-ए-त्वारिख कोहिस्ताने पंजाब” में मण्डी रियासत के इतिहास का उल्लेख किया गया है। राजा अजबर सेन के कार्यकाल का इतिहास टांकरी में पाया गया था। कनिघंम के अनुसार 1000 ई० पू० राजा बाहू सेन का राजा साहू सेन से युद्ध हुआ और वह मंगलोर में रहने लगा स्थानीय मुख्य के रूप में वह राणा कहलाए। उसके बाद जो मुख्य हुए उनमें निम्मत सेन, समुद सेन, नरवाहन सेन, कनवाहक सेन, सुवाहन सेन, वीर सेन, समुद सेन केन्शना सेन, मंगल सेन, जय सेन, करेन्छन सेन के नाम रिकार्ड में उपलब्ध हैं। पंजाब की पहाड़ी रियासतों का इतिहास जानने के लिए बोगल अथवा फोगल तथा हचीसन अथवा हुचीसन की पुस्तक हिस्ट्री ऑफ दा पंजाब हिल, स्टेटस एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। 1278 ई०पू० कारेन्छन सेन के कार्यकाल वे पश्चात बोगल तथा हचीसन के शब्दों में मण्डी रियासत के राजाओं की वंशावली के इतिहास का उल्लेख इस प्रकार है :-

कारेन्छन सेन: 1278 ई०पू०

कारेन्छन सेन द्वारा पंजाई, धुंजरी तथा काओ कोठी अपने निकट के क्षेत्र जीते गए। बनस, नीरु तथा बगली थाच के राजाओं को उसने नजराना देने के लिए वाधित किया।

वान सेन :-

कारेन्छन सेन द्वारा जो क्षेत्र राणाओं से लिए थे वह कुल्लू के अधिपत्य में थे अतः राणाओं ने कुल्लू की सहायता से कारेन्छन सेन की सेना पर धावा बोला जिसमें राजा मारा गया तथा मंगलौर का किला जला दियाा गया। कारेन्छन सेन की पत्नी गर्भवती थी जो रास्ते में भटकती हुई जा रही थी जिसे सुकेत के राजा के अनुयायी सुकेत लाए जहां उसने वान सेन को जन्म दिया। जब वह बड़ा हुआ तो उसने भियुली में अपना महल बनाया तथा पराशर देव मन्दिर भी बनाया। उसने खेल्टी तथा सागर के राजाओं पर आक्रमण भी किया। 1300 ई० में उसका निधन हो गया।

कल्याण सेन: 1300 ई०पू०

कल्याण सेन ने ब्यास के दाई और बराहुली में भूमि अधिग्रहीत की जहां उसने महल बनाया। इसे आजकल पुरानी मण्डी कहा जाता है। सागूर के राणा को मार कर उसका राज्य भी लिया।

हीरा सेन 1332 ई०पू०

इसके राज्य में कन्हवाल का क्षेत्र अपनी रियासत में मिलाया परन्तु वह गन्धर्व के राणा के साथ युद्ध में 1360 में मारा गया ।

धरीत्री सेन :- 1360 ई०पू० हीरा सेन की मृत्यु के बाद उसका भाई धरीत्री सेन गद्दी पर बैठा।

नरेन्द्र सेन :-1400 ई०पू०

धरीत्री सेन के बाद नरेन्द्र सेन गद्दी पर बैठा।

हरजय सेन :-1440 ई०पू०

दिलावर सेन 1470 ई०पू०

उपरोक्त राजाओं के राज्य काल के दौरान राणा और ठाकुरों को मण्डी के एक शासन के अन्तर्गत स गया।

अजबर सेन :- 1500 ई०पू०

राजा अजवर सेन द्वारा व्यास के बाएं तट के इलाको को अपने अधिपत्य । लेने के पश्चात अपनी राजधानी बदल कर मण्डी शहर में स्थापित की गई। महल को चोकोर बनाया गया रिय चौकी कहा गया जो बाद में खण्डरात के रूप में बदल गये।

मण्डी में भूतनाथ मन्दिर बनाया।

छत्र सेन: 1534 ई०पू०

कनिकम के अनुसार छत्रसेन का राज्य यद्यपि २२ वर्ष तक ही रहा परन्तु कुछ विशेष घटना इस अवधि में नहीं हुई।

साहिब सेनः- 1554 ई०पू०

साहिब सेन अपनी पत्नी जो कहलूर के राजा की पुत्री थी, के प्रभाव में था। उसने पत्नी की प्रेरणा से द्रंग के राणा पर आक्रमण किया उसे वहां से भगाया तथा द्रंग की नमक की खान अपने अधिपत्य में की जाजरु, कुपरु में किले के नाम भी इस राजा के नाम के साथ जुड़े हैं। रानी ने चौहार  घाटी के आराध्य देवता  हुरंग नरायण देवता से यह याचना की कि वह देवता की मूर्ति अपने गहनों से बनायेगी यदि उससे पुत्र पैदा होगा देवता के आशीर्वाद से उसे पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।

साहिब सेन ने राजा जगत सिंह का सहयोग लग के राजा के विरुद्ध दिया था जीत के पश्चात दोनों राजाओं में जब क्षेत्र बांटे गये तो राजा साहिब सेन को सिराज कुल्लू का इलाका प्राप्त हुआ।

नरायण सेन: 1575 ई०पू०

राजा ने नारायण गढ़ का किला बनाया। सुकेत का क्षेत्र जीत कर बल्ह तथा लुहारा में अपनी मोग निर्धारित की। इस समय रिवालसर का बहुत सा भाग राणा तथा ठाकुरों के अधीन था जिसके मुख्या बतियाणा, चुहार, सकलाना थोम्कन, दलशेरी कोथवान, चट्ठा खूनवार, करजोनन, रझेरी न्येर तथा लकड़ेडा थे।

केशव सेन: 1595 ई०पू०

कहा जाता है कि इस राजा के कार्यकाल में मण्डी मुगलों के शासन के अधीन आया। इसकी पत्र 1623 में हुई।

हरि सेन 1623 ई०पू०

राजा हरिसेन के समय में पड़ी तथा चम्बा के मध्य निकटतम सम्बन्ध स्थापित हुए। इसका निधन 1637 में हुआ।

सूरज सेन: 1737 ई०पू०

यहापि सूरज सेन बड़ा महत्वकांक्षी था परन्तु उसकी योजनाएं सफल नहीं हो पाई। यह गुलेर के राजा मान सिंह के साथ संघर्ष में भी असफल रहा। राजा सूरज सेन के 18 पुत्र थे। पुत्र विहीन होने के भय से राजा ने माधो गय की चान्दी की प्रतिमा बनाकर स्थापित कर राज पाठ उसे सौंपा।

श्याम सेन 1664 ई०पू०

श्याम सेन द्वारा मण्डी के 3000 फुट की ऊंचाई पर श्यामा काली मन्दिर बनवाया। सुकेत के राजा के साथ लोहारा का युद्ध किया जिसमें लोहारा का क्षेत्र मण्डी में मिलाया गया।

गौर सेन 1679 ई०पू०

गौर सेन ने सुकेत के साथ युद्ध जारी रखा तथा सुकेत से धन्यारा, वेरा, पतरी, बिलासपुर के राजा की सहायता से जीता।

सिद्ध सेन: 1684 ई०पू०

यह शक्तिशाली राजा था जिसने भंगाल, सुकेत तथा कुल्लू की ओर अपना क्षेत्र बढ़ायां इसका वजीर मियां जिप्पू था जिसकी सूझबूझ के कारण पूरा शासन उसके हाथों था। इसने मण्डी से २ किं०मी० की दूरी पर सिद्ध गणेश मन्दिर का निर्माण किया। इसका राज्य 41 वर्ष तक रहा। कहा जाता है कि उसकी आयु 100 वर्ष हुई।

शमशेर सेन: 1727-81 ई०पू०

शमशेर सेन शिव ज्वाला सेन का पुत्र था वह ५ साल की आयु में गद्दी पर बैठा इसलिए उसका कार्यकाल पर्याप्त लम्बा हुआ। जब वह छोटा था तो मियां जिप्पू ने उसके शासन की देखभाल की उसके पश्चात जब वह बड़ा हुआ तो वह छोटे वर्ग के लोगों के प्रभाव में आ गया जिस कारण रियासत को काफी नुकसान हुआ। 54 वर्ष तक राज्य करने के पश्चात 1781 में उसकी मृत्यु हो गई।

सूरमा सेन 1781 ई०पू०

इसके समय में मियों की शक्ति कम हो गई तथा राज्य खुशहाल हुआ। उसका ब्राह्मण शिक्षक वैरागी राम उसका बजीर बना तथा रियासत को उसने बुद्धिमता से चलाया। सुरमा सेन की 1788 में मृत्यु हो गई।

ईश्वरी सेन 1788 ई०पू०

सूरमा सेन की मृत्यु के पश्चात केवल 4 वर्ष की आयु में ईश्वरी सेन राजा बना। वेरागी राम उसके राज्य की देखभाल करता था। परन्तु मियों ने उसे समस्या पैदा करनी शुरू कर दी। उसने कांगड़ा के राजा संसार चन्द की सहायता लेनी शुरू की। संसार चन्द ने मौके का लाभ उठाया उसने 1792 में मण्डी को जीत लिया तथा 12 साल तक संसार चन्द को कैद में रखा।

जालिम सेन: 1826 ई०पू०

ईश्वरी सेन का उत्तराधिकारी न होने के कारण जालिम सेन गद्दी पर बैठा। वह बड़ा क्रूर था। उसने ग्रामीण तथा शहरी जनता पर कर लगाने शुरू कर दिये क्योंकि उसे लाहोर को 75000 रुपये कर के रूप में अदा करने थे।

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