राज्य अध्यक्ष चुनने में असमर्थ जैसी स्थिति क्यों,कांग्रेस में जाति और धर्म की राजनीति हावी

सुभाष ठाकुर*******

कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय स्तर से लेकर राज्य स्तर तक अपने संगठन की विचारधारा से भटक चुकी है।  कांग्रेस पार्टी के नेता क्षेत्रवाद, जातिवाद और धर्म के आधार पर नेताओं को संगठन की जिम्मेवारियां सौंप कर गांधी के विचारों कुंद कर व्यक्तिगत संगठन को प्रभावशाली बनाने में जुटे हुए हैं।जिसके चलते कांग्रेस की रैलियों में भी देखने को मिल रहा है कि जमीन से जुड़े हुए नेता तो पार्टी की विचारधारा से बंधे रहते है,और रैलियों में अपने संबोधन में भी विचारधारा को प्राथमिकता के साथ प्रचार करते हैं लेकिन जिन्हें क्षेत्रवाद तथा जातिवाद के पैराशूट से उतारा जा रहा है वहीं कांग्रेस की विचारधारा को क्षीण करते जा रहे हैं। राज्य का हर नेता अपना संगठन बनाना चाहता है। यही कारण है कि पिछले सात माह से हिमाचल कांग्रेस का प्रदेशाध्यक्ष न बदला जा रहा है और नहीं तो नए प्रदेशाध्यक्ष के नाम की घोषणा कर ला रहे हैं । इससे जाहिर हो रहा है कि राष्ट्रीय कांग्रेस राज्य के नेताओं के आगे घुटने के बल बैठ चुकी है। कांग्रेस का राष्ट्रीय नेतृत्व ऐसे पशोपेश में उलझा हुआ है कि किस क्षेत्र के नेता को किस जाति के नेता को राज्य की सियासी कमान सौंपी जाए। भले ही उनका जमीनी स्तर पर कोई प्रभाव न हो। जमीनीस्तर स्तर से जुड़े हुए नेताओं को पीछे कर व्यक्तिगत प्रभाव बनाए लेकिन कांग्रेस संगठन की संज्ञा में भी परिवर्तन करना होगा।

राज्य के नेता राष्ट्रीय नेतृत्व के समक्ष अपना व्यक्तिगत प्रभाव बनाने के लिए अपनी जाती और धर्म के लोगों का नाम बढ़ाते रहे कांग्रेस वैसे ही कमजोर होती जा रही है। लोकप्रियता को प्राथमिकता नहीं बल्कि व्यक्तिगत प्रभावशाली को प्राथमिकता से पार्टी को भारी नुकसान हो सकता है।

जिससे पार्टी के मूल सिद्धांतों और विचारधाराओं को नुकसान पहुंच रहा है।

कांग्रेस पार्टी अपने राज्य अध्यक्ष का चयन नहीं कर पा रही है, क्योंकि पार्टी के नेता अपने व्यक्तिगत हितों और जाति-धर्म के आधार पर निर्णय ले रहे हैं। इससे पार्टी के संगठन को कमजोर किया जा रहा है।

कांग्रेस राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा अपने समर्थन की कतार खड़ा कर राज्यों में गुटबाजी को जन्म देते रहे हैं। राज्यों के स्थापित नेताओं को कमजोर कर राष्ट्रीय कांग्रेस नेतृत्व द्वारा अब जाती,धर्म के नाम की कतार खड़ी कर पार्टी के समर्थकों का मनोबल गिराने के सिवाय कुछ नहीं होने वाला है।

राज्य में कांग्रेस पार्टी की सत्ता होते हुए भी संगठन पिछले सात माह से घोषित तक नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस राष्ट्रीय नेतृत्व प्रदेश की जनता और पार्टी समर्थकों की राय जाने बिना नेता नेतृत्व नाम का चेहरा थोपा जाता है।

कांग्रेस संगठन और राज्य में कांग्रेस की सत्ता में अब ऐसे नेताओं को जिम्मेवारियां सौंपी जा रही है , जो नेता विधानसभा और लोकसभा चुनावों के साथ साथ अन्य पार्टी विरोधी गतिविधियों शामिल होने वालों को मान,सम्मान दे कर सरकार और संगठन में एहम जिम्मेवारियों से नवाजा जा रहा है। जिसके चलते पार्टी के ईमानदार नेताओं और समर्थकों का मनोबल गिरता जा रहा है और पार्टी दिन- प्रति कमजोर होती रही है।

संगठन देश के विभिन्न राज्यों में

*पार्टी की विचारधारा का क्षरण*

पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं, जिन्होंने पार्टी के संगठन को मजबूत करने के बजाय कमजोर करने का काम किया है। इससे पार्टी के भविष्य पर भी सवालिया निशान लग गया है।

*पार्टी के लिए चुनौती*

अब कांग्रेस पार्टी के लिए अपने संगठन को मजबूत करना और अपनी विचारधारा को पुनः स्थापित करना एक बड़ी चुनौती होगी। पार्टी को अपने नेताओं को क्षेत्रवाद, जाति और धर्म से ऊपर उठकर काम करने के लिए प्रेरित करना होगा।

*क्या है भविष्य?*

अब देखना यह होगा कि कांग्रेस पार्टी अपने संगठन को मजबूत करने और अपनी विचारधारा को पुनः स्थापित करने के लिए क्या कदम उठाती है। क्या पार्टी अपने नेताओं को सही दिशा में ले जा पाएगी या नहीं? यह समय ही बताएगा।

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