


लगभग ५०० वर्ष की लम्बी प्रतीक्षा के बाद भगवान श्री राम जी के बाल स्वरुप राम लल्ला जी की अयोध्या जी में प्राण प्रतिष्ठा होने के सुयोग बने है। राम मंदिर भगवान राम लल्ला जी के स्वागत के लिए अद्भुत नक्कासी और नेत्रों को सम्मोहित करने वाली खूबसूरती के साथ तैयार है। अपने किसी पुण्य प्रारब्ध के फल से हमारा जन्म इस युग में हुआ, जिस युग में परम देव राम जी, एक बार फिर से भव्य रूप में अयोध्या जी में, प्राण प्रतिष्ठा के साथ स्थापित किये जा रहे है। इसके लिए 22 जनवरी, 12:20 मिनट दोपहर का समय प्राण प्रतिष्ठा पूजा मुहूर्त के लिए तय किया गया है। प्रतिमाएं भी प्रतीक्षारत है की कब भगवान उनमें वास करेंगे, कब वे सिद्ध, शक्तिमय, प्राणयुक्त और जीवंत हो उठेंगी।
देव प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा के बाद राम लल्ला जी और अन्य देवी देवताओं की प्रतिमाएं पूजनीय हो जाएंगी। इसके बाद उनके पूजन शुभ फल प्राप्त होने प्रारम्भ हो जाएंगे। प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा प्रतिमाओं को जीवंत करने की प्रक्रिया वैदिक और सनातनी धर्म का महत्वपूर्ण प्रक्रिया कहा जा सकता है।
सनातन धर्म में प्राण प्रतिष्ठा से अभिप्राय है-
जब भी लोग किसी देवमूर्ति को घर के मंदिर में लाते हैं तो पूरे विधि विधान से इसकी पूजा की जाती है। इस प्रतिमा में जान डालने की विधि को ही प्राण प्रतिष्ठा कहते हैं। यह मूर्ति को जीवंत करती है जिससे की यह व्यक्ति की विनती को स्वीकार कर सके। प्राण-प्रतिष्ठा की यह परंपरा हमारी सांस्कृतिक मान्यता जुड़ी है कि पूजा मूर्ति की नहीं की जाती, दिव्य सत्ता की, महत् चेतना की, की जाती है।
सनातन धर्म में प्रारंभ से ही देव मूर्तियां ईश्वर प्राप्ति के साधनों में एक अति महत्वपूर्ण साधन की भूमिका निभाती रही हैं। अपने इष्टदेव की सुंदर सजीली प्रतिमा में भक्त प्रभु का दर्शन करके परमानंद का अनुभव करता है और धीरे धीरे ईश्वर की और उन्मुख हो जाता है। देवप्रतिमा की पूजा से पहले उनमें प्राण-प्रतिष्ठा करने के पीछे का कारण मात्र वैदिक परंपरा मात्र नहीं है, अपितु यह परिपूर्ण तत्त्वदर्शन भाव से युक्त है।
उदहारण के लिए – जिस प्रकार पम्प और वाटर मोटर के द्वारा भूमि में सम्माहित जल को एकत्रित किया जा सकता है, वायु को यंत्र द्वारा किसी गुब्बारे में एकत्रित किया जा सकता है, प्रकाश को किसी कमरे में बिजली के द्वारा सम्माहित किया जा सकता है। ठीक उसी प्रकार मन्त्रोंचार और पूजन के द्वारा देव प्रतिमाओं को जीवंत किया जाता है।
प्राण-प्रतिष्ठा दो प्रकार से होती है। प्रथम चल-तथा द्वितीय अचल। अचल में मिट्टी या बालू से बनी मूर्तियों का आह्वान और विसर्जन किया जाता है किंतु लकड़ी और रत्नयुक्त मूर्ति का आह्वान या विसर्जन करना ऐच्छिक है।
यह समस्त कार्य तभी सफल होते हैं जब प्रतिमा प्राण प्रतिष्ठित हो अन्यथा सारी पूजा उपासना व्यर्थ हो जाती है। कहा गया है कि जो मनुष्य अप्रतिष्ठित देव प्रतिमा का पूजन नहीं करता है, उसके अन्न को देवता ग्रहण नहीं करते। अत: घर आदि अप्रतिष्ठित प्रतिमा हो तो उसका त्याग कर देना चाहिए।
इसके लिए 22 जनवरी, 12:20 मिनट दोपहर का समय प्राण प्रतिष्ठा पूजा मुहूर्त के लिए तय किया गया है। प्रतिमाएं भी प्रतीक्षारत है की कब भगवान उनमें वास करेंगे, कब वे सिद्ध, शक्तिमय, प्राणयुक्त और जीवंत हो उठेंगी। प्राण प्रतिष्ठा पूजन मुहूर्त के लिए 22 जनवरी, 12:20 दोपहर अभिजीत मुहूर्त, मृगशिरा नक्षत्र, चंद्र वृषभ राशि, दिन सोमवार, मेष लग्न का चयन किया गया है।
इसके लिए 22 जनवरी, 12:20 मिनट दोपहर का समय प्राण प्रतिष्ठा पूजा मुहूर्त के लिए तय किया गया है। प्रतिमाएं भी प्रतीक्षारत है की कब भगवान उनमें वास करेंगे, कब वे सिद्ध, शक्तिमय, प्राणयुक्त और जीवंत हो उठेंगी।
प्राण प्रतिष्ठा पूजन मुहूर्त के लिए 22 जनवरी, 12:20 दोपहर अभिजीत मुहूर्त, मृगशिरा नक्षत्र, चंद्र वृषभ राशि, दिन सोमवार, मेष लग्न का चयन किया गया है। इस दिन के मुहूर्त की शुभता की विशेषता है की मुहूर्त के दिन सर्वार्थ सिद्धि और अमृत सिद्धि जैसे योग भी दिन की शुभता में वृद्धि कर रहे हैं। मुहूर्त के दिन लग्न भाव में देव गुरु बृहस्पति देव लग्न, पंचम, सप्तम और नवम भाव को अपनी शुभता का आशीवार्द दे रहे हैं। गुरु यहाँ लग्न शुद्धि कर रहे हैं। स्वतंत्र भारत की जन्म राशि कर्क है, मुहूर्त के दिन चंद्र चंद्र से एकादश भाव वृषभ राशि में गोचर कर रहे है, इससे मुहूर्त की शुभता भारत की कुंडली और समस्त भारतीयों के लिए शुभ रहने के योग बन रहे है। अभिजीत मुहूर्त में यह शुभ कृत्य संपन्न होने वाला है, अभिजीत मुहूर्त स्वयं में अतिशुभ मुहूर्त की श्रेणी में आता है।
इस प्रकार राम लल्ला जी प्राण प्रतिष्ठा मुहूर्त काल समय में मुहूर्त के सभी नियमों का पूरा ध्यान रखा गया है। एक शुभ काज, शुभ समय में संपन्न होने जा रहा है। यह बहुत शुभ विचार है। हम सभी सनातनी इसका स्वागत करते है। और मंगलगीत गाकर अपनी प्रसन्नता प्रकट करते है।
आचार्या रेखा कल्पदेव
दिल्ली