जांच एजेंसियों की छापे मारी से बीजेपी के ईलेकट्रोरल बॉन्ड से हुई किरकिरी पर केजरीवाल का पर्दा डालने का प्रयास
सुभाष ठाकुर*******
देश में लोकसभा चुनावों तथा राज्यों के विधानसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता 16 मार्च से लागू हो चुकी है , देश में 18वीं लोकसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता लागू हो चुकी है । केंद्रीय चुनाव आयोग लोकसभा तथा राज्यों के विधानसभा चुनावों को निष्पक्षता और लोकतांत्रिक प्रणाली से करवाने के लिए चुनाव आयोग विभिन्न कार्यकर्म मुस्तैदी से जुटा हुआ है। वहीं केंद्र की सत्ता पर बैठी बीजेपी की कार्यप्रणाली जो पिछले दस वर्षों में रही है देश की जनता केंद्र की सत्ता की कारगुजारी पर अपना मत देगी या नही देगी सारा खेल आदेश अचार संहिता लागू होने के बावजूद खेला जाने लगा है । केंद्र की बीजेपी सरकार को डर है कि देश के कई राज्यों में उनकी बहुत बड़ी संख्या में सीटें कम हो जायेगी और बीजेपी केंद्र की सता से दूर रह जायेगी । केंद्र की सत्ता पर कब्जा बरकरार रखने के लिए सभी जांच एजेंसियों सक्रियता से अपने कार्यक्रम में लगी हुई है। दिन हो या रात विपक्ष के नेताओं को उनके आवास से उठाकर कर जेल में डाला जा रहा है। लेकिन जो राज्यों में बीजेपी सरकार के दौरान विश्वविद्यालयों में फर्जी नियुक्तियां की गई ,पेपर लीक कर करोड़ों रुपए का भ्रष्टाचार किया गया, शराब के टेंडर पर 10% हर साल वृद्धि कर किसको लाभ दिया गया ? फर्जी नियुक्तियों के ऐसे मामले राज्यों के न्यायलय में पिछले एक वर्ष से विचाराधीन है। वहां क्यों नही जांच एजेंसियों द्वारा बीजेपी नेताओं पर कार्यवाही हुई ? उन्हे क्यों बचाया जाता रहा ।जबकि बीजेपी की सरकार पर किसी विपक्ष के नेताओं द्वारा नही बल्कि बीजेपी के नेताओं द्वारा ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगाए हुए थे। देश में 18वीं लोकसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता लागू के साथ साथ अघोषित इमरजेंसी के हालत से कम नही देखा जा सकता है।
सत्ता की गद्दी पर बैठे शासक तभी बेहतर राष्ट्र निर्माण कर सकतें हैं जब विपक्ष को भी मजबूत रहने दें। विपक्ष को आम जनता की आवाज उठाने दो, ताकि सत्ता की गद्दी में बैठे शासकीय लोगों का ध्यान विपक्ष द्वारा आम जनता की हर उस आवाज को सुने और प्राथमिकता के साथ विपक्ष की आवाज का समाधान किया जाता रहे।
यहां तो विपक्ष की संपति को छीन कर तानाशाही से मित्रों की झोली और तिज़ोरी को भरने का शासकीय कार्य चल रहा है।
जांच एजेंसियों की छापे पारी होने के कुछ दिनों बाद बीजेपी के ईलेकट्रोरल बॉन्ड खरीदे गए दो दर्जन कंपनियों के नाम सामने आने के बाद केंद्र कीबीजेपी की खूब किरकिरी सोशल मीडिया पर शुरू हो चुकी है ।
इलेक्ट्रारल बॉन्ड से हो रही किरकिरी के चलते दिल्ली सरकार के मुख्यमंत्री को ईडी द्वारा गिरफ्तार करने की खबर के दबाव में चुनावी बॉन्ड की खबर पर पर्दा पड जायेगा। हाई कोर्ट में गिरफ्तार न करने की याचिका पर इनकार कर दिया था । दिल्ली सरकार के शराब घोटाले का यही मामला दो साल पहले का चला हुआ है लोकसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता लागू होने के बाद विपक्ष के नेताओं को चुनावी दौर में गिरफ्तार कर लोकतंत्र की सुरक्षा नही बल्कि इमरजेंसी जैसे हालात बना डाले है।
पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सुरेन, दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल , लोकसभा चुनावों की आदर्श आचार संहिता लागू और कांग्रेस के बैंक खाते सीज , टीवी चैनल उस खबर से आंख मिचौली का खेल खेल कर चुनावी बॉन्ड की खबर पर घंटो चर्चा नही करेंगे क्योंकि उनका आका नाराज हो जायेगा। टीवी चैनलों की खरीद कर मीडिया को गोदी मीडिया बना रखा हुआ है। राज्यों में विपक्ष की सरकारों को ईडी, सीबीआई आईटी विभिन्न जांच एजैंसियों का दुरुपयोग कर संवैधानिक मर्यादाओं को पार कर गिराया जाता रहा है।
बीजेपी को सिर सत्ता पानी यह देश के लोकतंत्र की हत्या नही तो और क्या? बीजेपी सत्ता पर बनीं रहे लेकिन लोकतंत्र का गला घोंट कर नही लोकतांत्रिक चुनावी रण में उतरकर आमजनता के मत दाताओं के मतों का बहुमत हासिल प्राप्त कर आए ।
वहां भी ईवीएम की चोरी कर , ईवीएम में कैद आंकड़ों से छेड़छाड़ कर लोकतंत्र की जीत नही बल्कि तानाशाही से छीना झपटी कर लोकतंत्र का गला घोंट कर अपवित्रता का बोझ उठा कर पापों का बोझ उठाकर सत्ता की उस गद्दी को सत्ता की गद्दी नही बल्कि षड्यंत्र रच कर संवैधानिक गद्दी को हासिल करने का प्रयास होता रहा है । जब देश ईवीएम का विरोध होता रहा तो पोस्टल बैलेट से देश के चुनाव हों तो फिर बीजेपी अकेली क्यों डरी ?
बीजेपी ने देश की जनता का ईमानदारी से मतदान हासिल करने का विश्वास खो डाला है बस तानाशाही से मतदान नही बल्कि चंडीगढ़ में एमसी के चुनावों परिणाम देश विदेशों में देखा और देश के सर्वोच्च न्यायलय ने फैसला भी सुना दिया कि चुनाव अधिकारी द्वारा कैसे लोकतंत्र की हत्या कर बीजेपी को सत्ता की गद्दी सौंपी थी वहां से न्यायालय द्वारा हटाया गया।
देश का लोकतंत्र बचाने के लिए पढ़ा लिखा युवा पिछले दस वर्षों से केंद्र सरकार की उस कार्यप्रणाली को समझ चुका है जिन्होंने दसवी के मैथ में फेल व्यक्ति को केंद्रीय विश्वविद्यालय में वॉटनी का प्रोफेसर बना डाला है , टीजीटी शिक्षक को विश्वविद्यालय के प्रोफेसर बना दिया है , अनेकों अपात्र लोगों को उच्च शिक्षण संस्थानों के संघीय ढांचों पर जबरन किए हुए कब्जे को बचाए रखने के लिए यह सब किया जा रहा है कि केंद्र की सत्ता जैसे कैसे जानी नही चाहिए अन्यथा लोकसभा चुनावों के परिणाम विपक्ष के पाले में जाने के बाद जो परिस्थिति अभी से दिखाई देने लगी है उसे ये भांप चुके है तभी तो यह सब चलाया जा रहा है।
देश का मतदाता लोकसभा चुनावों में खुद तय करेगा कि उच्च शिक्षण संस्थानों को इनके कब्जे में रखना है या अपनी कड़ी मेहनत से पढ़े लिख कर अपने भविष्य के निर्माण के लिए अपना मतदान करना है यह युवाओं को खुद तय करना है।