दशहरा उत्सव वुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में मनाया गया था।त्रेतायुग से मनाए जा रहे दशहरा पर्व के बावजूद रावण के अपराध अभी तक खत्म नहीं हुए, जिसकी वजह से कलयुग में भी उसका दहन प्रत्येक वर्ष किया जा रहा है। रावण का दहन करने के लिए सर्वप्रथम हमें मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम चंद्र भी वनना पड़ेगा?।भगवान श्री राम चन्द्र वह आदर्शवादी वेटा रहे जिसने अपने पिता के एक वचन की लाज रखने के लिए चौदह साल का वनवास भी स्वीकार कर लिया था।आज के युग में ऐसा आदर्शवादी वेटा किसी वाप को मिलना असंभव है।दशहरा पर्व को जश्न का त्यौहार माना गया है।आज के वक्त यह वुराई पर अच्छाई का ही प्रतीक है,वुराई किसी भी रूप में हो सकती है।क्रोध,असत्य,वैर,ईर्ष्या,दुख,आलस्य आदि किसी भी आंतरिक वुराई को खत्म करना भी आत्म विजय है।आज हमें इन तमाम बुराइयों को खत्म करके ही इस जश्न को मनाना चाहिए।इन वुराइयों का त्याग किए जाने पर ही हम अपनी सभी इन्द्रियों पर राज कर सकते हैं।यह वुरे आचरण पर अच्छे आचरण की जीत की खुशी का पर्व है।जश्न की मान्यता सभी की अलग होती है।किसानों के लिए फसलों के घर आने का जश्न है,पूर्व वर्षों में इस दिन औजारों एवं हथियारों की पूजा की जाती थी।दशहरा पर्व अश्विन माह की शुक्ल पक्ष को मनाया जाता है।यह नवरात्र खत्म होते ही अगले दिन मनाया जाने वाला पर्व है।भारत में कुछेक जगहों पर रावण का दहन किए जाने वजाए उसकी पूजा भी की जाती है।
कर्नाटक के कोलार,मध्यप्रदेश के मंदसौर, राजस्थान के जोधपुर, आंध्रप्रदेश के काकीनाडा और हिमाचल प्रदेश के वैजनाथ में रावण की पूजा की जाती है।रावण को कहीं पंडित तो कहीं राक्षस ही क्यों माना गया इस पर लोगों की राय एक क्यों नहीं है?।दशकों गुजर जाने बावजूद भी आखिर क्यों रावण का पुतला जलाया जा रहा है?।क्या आने वाली पीढ़ीयों को हम वुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देने में अव तक कामयाव वनें हैं?।शिक्षण संस्थानों में महाकाव्य रामायण पढ़ाने की वजाए इस तरह प्रत्येक वर्ष रामलीलाओं के मंचन का कितना प्रभाव जनता पर पड़ा जरूर सोचना होगा?।आज के समय में दशहरा इन पौराणिक कथाओं को माध्यम मानकर मनाया जाता है।देवियों के 9 दिन की समाप्ति के वाद दसवें दिन जश्न के तौर पर मनाया जाता है।इस मौके पर रामलीलाओं का सफल मंचन करके लोगों को भगवान श्री राम चंद्र के मार्ग पर चलने का संदेश दिया जाता है।दशहरा पर्व पर कई जगहों पर मेले लगते हैं,जिनमें कई दुकानें एवं खाने, पीने के आयोजन होते हैं।इस दिन घरों में लोग अपने वाहनों, व्यापारी वर्ग अपने लेखों और किसान अपने जानवरों एवं फसलों की पूजा करते थे।हमारे देश में धार्मिक मान्यताओं के पीछे एक ही प्रेम एवं सदाचार की भावना होती है,जो हमें एकता की शक्ति का स्मरण कराती है।हम समय अभाव कारण ऐसे त्यौहारों की मान्यताओं को भूलकर मात्र औपचारिकता से मनाए जाने के आदि वनते जा रहे हैं।आज के समय त्यौहार अपनी वास्तविकता से अलग जाकर आधुनिक रूप ले रहे हैं,जिससे इनके महत्व में कहीं न कहीं कमी आ रही है।दशहरे पर एक दूसरे के घर जाने का रिवाज था,अव इसकी जगह मोबाइल काल एवं इंटरनेट मैसेज ने ली है।
किसी के घर खाली हाथ जाने की वजाए शमी पत्र ले जाते थे,अव इसके वदले मिठाई एवं तोहफे ले जाने शुरू हैं।इन्ही कारणों की वजह से फिजूल खर्ची वढ़ने से यह प्रतिस्पर्धा का त्यौहार वन गए हैं।दशहरे के इस पर्व को विजयादशमी भी कहा जाता है।रावण दहन के पीछे उस पौराणिक कथा को याद रखा जाता था,जिससे एक संदेश सभी को मिले की अहंकार सर्वनाश करता है।मगर अव त्यौहारों पर पटाखें फोड़े जाते, और शराव पीना लोग खुशी का साधन मानते हैं।आधुनिकता की चकाचौंध रौशनी की वजह से तमाम त्यौहारों का स्वरूप वदलता जा रहा है।लोग इसे धार्मिक आडम्बर का रूप मानकर इनसे दूर होते जा रहे हैं।पुराणों अनुसार इन सभी त्यौहारों का रूप वहुत ही साधारण था,उसमें दिखावा नहीं वल्कि ईश्वर के प्रति आस्था थी।देवी दुर्गा ने लोगों की रक्षा के लिए राक्षस महिषासुर का वध किया था।दक्षिण भारत में इस दौरान देवी दुर्गा,चामुंडेश्वरी की पूजा,अर्चना अधिक की जाती है।इन माताओं ने मानवता की रक्षा के लिए महिषासुर और असुरों की सेना को चामुंडा की पहाड़ियों में युद्ध करके पराजित किया था।इस दौरान देवी दुर्गा,लक्ष्मी, सरस्वती माता,आराध्य देवता भगवान गणेश और कार्तिकेय की पूजा की जाती है।
वस्तर के दंड कारण में भगवान राम चंद्र ने अपने चौदह वर्ष वनवास काटे थे।इसलिए प्रत्येक वर्ष वहां दशहरा पर्व धूमधाम से मनाया जाता है।मैसूर का दशहरा दुनियां भर में प्रसिद्ध है,जो कर्नाटक का प्रादेशिक त्यौहार है,मैसूर में दशहरा लंबे समय तक मनाया जाता है,जिसमें भारत के अलावा दुनियां भर के लोग यहाँ पहुंचते हैं।हिमाचल प्रदेश जिला कुल्लु के ढालपुर मैदान में अंतराष्ट्रीय स्तर का दशहरा पर्व देखने के लिए देश,विदेश के पर्यटक देवभूमि पहुंचते हैं।देवभूमि प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण होने की वजह से अक्सर पर्यटक जहां त्योहारों के सीजन पर घूमने के लिए चले आते हैं।मदिसेरी दशहरा कर्नाटक में दस दिनों तक,राजस्थान कोटा और मंगलोर का दशहरा अपनी विशेष पहचान वनाए हुए है।हिन्दू धर्म के प्रति लोगों की विशेष आस्था वनी रहे जरूर प्रयास किए जाने की जरूरत है।सरकारी विभागों और निजी क्षेत्रों में काम करने वाले कर्मचारियों को उत्सव वाले दिन डबल वेतन दिया जाए।मेलों का आयोजन,दुकानों में सेल की भरमार और चाइना सामान की वजाए स्वदेशी चीज़ों का इस्तेमाल किए जाने से ऐसे उत्सवों का वजूद वचाये रखा जा सकता है।
नूरपुर,सुखदेव सिंह