*** शिमला विश्वविद्यालय में अधिनियम, 1970 के प्रावधानों के विपरीत हुई प्रोफेसरों की नियुत्यां
***चयन प्रक्रिया दिखावा करार ,बोले शक्ति का हुआ दुरुपयोग
*** विश्वविद्यालयों में फर्जी नियुक्तियों में शामिल प्रोफेसर होने लगे अग्निवीर योजना के शिकार !
सुभाष ठाकुर*******
शिमला उच्च न्यायालय द्वारा जारी किए गए एक आदेश को पढ़ते ही विश्वविद्यालयों में हुई नियुक्तियों के विवादों से घिरे हुए उन सभी प्रोफेसरों तथा तथा सहायक प्रोफेसरों की मुश्किलें बढ़ गई है। क्योंकि न्यायालय का यही आदेश अन्य विश्वविद्यालयों में हुई प्रोफेसरों की उन सभी विवादित नियुक्तियों के मामलों में सहायक सिद्ध होने वाला है।
शिमला उच्च न्यायालय द्वारा आज 8 जुलाई को अपना आदेश जारी किया हुआ है , जिसका निर्णय न्यायालय द्वारा 30 मई 2024 को लिया गया था। वर्ष 2021 को सीडब्ल्यूपी संख्या 2287 की याचिका के मामले का आदेश न्यायालय द्वारा आज जारी कर शिमला विश्वविद्यालय में नियुक्त हुए गणित विषय के सहायक प्रोफेसर की नियुक्ति रद्द कर डाली है। न्यायलय के आदेश आते ही सोशल मीडिया में आग की तरह तेजी से वायरल होने लगा है।
प्रदेश के लाखों पढ़े लिखे युवाओं को न्यायलय के इस फैसले से राहत की सांस ली जा रही है।
न्यायलय द्वारा जारी किए गए अपने आदेश के पैहरा संख्या 34. में कहा गया है कि संकल्प के अनुसार नियुक्ति की अपनी शक्ति कुलपति को सौंपने का कार्यकारी परिषद का कार्य
दिनांक 21.11.2020 कानून की दृष्टि से खराब करार दिया गया है। क्योंकि यह बिना किसी अधिकार क्षेत्र के है और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय अधिनियम, 1970 के प्रावधानों के विपरीत है। इसके परिणामस्वरूप, प्रतिवादी विश्वविद्यालय द्वारा निजी उत्तरदाताओं को दी गई नियुक्तियों के आधार पर कुलपति द्वारा प्रयोग की गई यह प्रत्यायोजित शक्ति भी कानून की दृष्टि से खराब है।
इससे यह भी पता चलता है कि पूरी प्रक्रिया एक दिखावा मात्र थी और यह शक्ति का दुरुपयोग था। जिससे याचिकाकर्ता के इस तर्क को बल मिलता है कि यह सब निजी प्रतिवादियों की मदद के लिए किया गया था, जिनके पति-पत्नी विश्वविद्यालय में कार्यरत थे।
न्यायालय के इस फैसले से यह भी साबित हुआ है कि एक के बाद एक नियुक्तियां न्यायालय से रद्द होने से शिमला विश्वविद्यालय , सरदार पटेल मंडी तथा केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला में पूर्व की सरकार के दौरान हुई नियुक्तियां परिवारवाद को अधिकतर बढ़ावा देने वाली चयन प्रक्रिया में शामिल प्रोफेसरों की मुश्किलें बढ़ना तय देखा जा रहा है। क्योंकि न्यायालय ने अपने आदेश में साफ किया हुआ है ।
न्यायालय के फैसले में यह कहा गया है कि न्यायालय को यह मानने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि कार्यकारी परिषद द्वारा प्रत्यायोजित शक्तियों का प्रयोग करते हुए एसोसिएट प्रोफेसर (गणित) के पद के विरुद्ध कुलपति द्वारा निजी उत्तरदाताओं की नियुक्ति की गई है जबकि यह शक्ति नहीं हो सकती थी।
कार्यकारी परिषद द्वारा कुलपति को सौंपा गया मामला कानून की नजर में गलत करारा दिया गया । न्यायालय ने कहा कि इसलिए निजी उत्तरदाताओं की नियुक्ति को खारिज किया जाता है।
न्यायालय ने अपने आदेश में यह भी कहा है कि प्रतिकूल टिप्पणी न की जा सके जो भविष्य में उनकी नियुक्ति में बाधा बन सकती है।
हालांकि, मुद्दों को खुला छोड़ दिया गया है। प्रतिवादी-विश्वविद्यालय पदों को नए सिरे से विज्ञापित करे और उन्हें कानून के अनुसार भरे। लंबित विविध आवेदन (आवेदनों), यदि कोई हो, को भी तदनुसार निपटाने का आदेश दिया गया है।
*बॉक्स*
विश्वविद्यालय में हुई फर्जी नियुक्तियों का मामला राज्य उच्च न्यायलय से एक के बाद एक रद्द होती जा रही है। इस पूर्व ई डबल्यू एस के प्रमाणपत्र के फर्जी पाए जाने से नियुक्ति रद कर दी गई है। जिससे यह साबित हो रहा है कि पूर्व में भाजपा की सरकार में विश्वविद्यालयों हुई नियुत्कियों का मामला यूं ही विवादों में नहीं उलझा हुआ है । बल्कि आरटीआई से जुटाई गई सूचना के आधार पर मामलों के फर्जीवाड़े से पर्दा फाश हुआ है।
हिमाचल प्रदेश विभिन्न विश्वविद्यालों में हुई फर्जी नियुतियों के मामले में मंडी सरदार पटेल विश्वविद्यालय , शिमला विश्वविद्यालय तथा केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला काफी चर्चा में रहा है।
अमर ज्वाला ने एक के बाद एक फर्जी नियुक्तियों का मामला प्रमुखता से उजागर किया हुआ है। जिसका परिणाम उच्च न्यायालयों के आदेश से स्पष्ट होता जा रहा है।
जिन्ह़ कांग्रेस के नेताओं ने यह मामला उठाया हुआ था वह भी सत्ता के नशे में चूर होकर युवाओं के साथ छल कर सत्ता का भोग चख रहे हैं और खुद मामले पर आज खामोश हो चुके हैं।
कांग्रेस के कुछ नेताओं द्वारा आरटीआई एक्टिविस्ट से अपनी राजनीति चमकाने के लिए दस्तावेज लेकर मीडिया में प्रेस कांफ्रेंस कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंक कर सरकारी मलाई चाटने तक सीमित रहे ।
लेकिन प्रदेश की कांग्रेस सरकार और नेता विश्वविद्यालयों में हुई फर्जी नियुक्तियों के मामलों में इस लिए चुप हो चुके हैं कि उन्होंने भी विश्वविद्यालयों में अपने परिवार की भर्तियों का सिलसिला शुरू कर दिया है ।
प्रदेश के पढ़े लिखे लाखों युवाओं को उम्मीद थी कि भाजपा की सरकार के कार्यकाल में हुई विश्वविद्यालयों की फर्जी नियुक्तियों का मामला कांग्रेस की सरकार आते ही जांच शुरू करेगी । कांग्रेस नेताओं ने प्रेस वार्ता कर अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम किया । युवाओं को न्याय दिलाने का वादा किया था सीबीआई की जांच करवाने का वादा किया हुआ था । लेकिन प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की कांग्रेस सरकार ने जांच तो दूर बल्कि उपमुख्यमंत्री ने अपनी पुत्री की सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति करवा डाली। जिसके कारण प्रदेश का पढ़ा लिखा युवा वर्ग प्रदेश की कांग्रेस सरकार से खफा हो चुका है । परिणाम लोकसभा चुनावों में भी देखने को मिला है और आने वाले उपचुनावों में भी देखने को मिलेगा।
विश्वविद्यालयों में फर्जी नियुतियों के कई मामले न्यायालय में विचाराधीन होने से एक के बाद एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होने लगे अग्निवीर योजना के शिकार ।