2024 दीपावली पर्व निर्णय
पंचांग निर्माण के भारतवर्ष में दो पक्ष प्रचलित है (1) सौर पक्ष ( 2 ) दृक् पक्ष
सौर पक्ष से प्राप्त होने वाले ग्रहों के भोग्य अंश ,तिथि, नक्षत्र , योग के समाप्ति काल , दृक् पक्ष से प्राप्त गणना से स्थूल होते हैं । जिस कारण इनके व्रत एवं पर्वों की तिथियों में समानता नहीं होती । यद्यपि दृक् पक्ष के पंचाग की गणित पद्धति को ही भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है । सौर पक्ष से प्राप्त होने वाले ग्रहों के भोग्य अंश ,तिथि, नक्षत्र , योग के समाप्ति काल मैं भिन्नता होने के कारण ही वर्ष 2024 में दीपावली पर्व कब मनाया जाए इस बात का संशय उत्पन्न हुआ है ।
शास्त्री दिनेश गौतम ने दीपावली मनाने के संशय पर विराम लगाते हुए बताया कि दीपावली इस वर्ष 31 अक्तूबर को नहीं बल्कि 1 नवंबर को ही मनाई जाएगी। 31 अक्तूबर को दीपावली की सरकारी छुट्टी घोषित होने के चलते भी लोगों में भ्रम की स्थिति बनी हुई है ।
दीपावली कब मनाई जानी शास्त्र सम्मत है :-
प्रदोष व्यापिनी (सूर्यास्त के बाद त्रिमुहूर्त ) कार्तिक अमावस्या के दिन ही दीपावली (महालक्ष्मी पूजन ) मनाने की शास्त्र आज्ञा देता है ।इस वर्ष ( वि. संवत् 2081 में )31 अक्टूबर 2024 गुरुवार के दिन 3:53 शाम से अमावस्या तिथि शुरू होकर अगले दिन (1 नवंबर 2024 शुक्रवार ) को सांय 6 बजकर 17 मिनट तक व्याप्त है । अतः यह स्पष्ट है कि अगले दिन 1 नवंबर को प्रदोष काल में अमावस्या तिथि की व्याप्ति कम समय के लिए है (क्योंकि पंजाब हिमाचल जम्मू आदि राज्यों में सूर्यास्त लगभग 5:35 मिनट सांय को होगा। ) जबकि 31 अक्टूबर 2024ई को अमावस्या पूर्णरूप से प्रदोष एवं निशिथ काल को व्याप्त कर रही है । परंतु फिर भी शास्त्र के निर्देशानुसार दीपावली पर्व (महालक्ष्मी पूजन ) 1 नवंबर शुक्रवार 2024 ई को ही मनाना शास्त्र सम्मत होगा ) क्योंकि धर्म सिंधु : आदि निर्णय ग्रन्थों में इस बात का प्रमाण दिया गया है कि यदि अमावस्या दो दिन हो तो अगले दिन की अमावस्या तिथि ही ग्रहण करनी चाहिए । 1 नवंबर 2024 को दीपावली पर्व , स्वाति नक्षत्र , प्रीति व आयुष्मान योग , तुला राशि का चंद्रमा युक्त होने से सारा दिन ग्रहणीय होगा । अतः शास्त्रनिर्देशानुसार ‘दीपावली पर्व महालक्ष्मी-पूजन 1 नवम्बर, शुक्रवार, 2024 को ही मनाना शास्त्रसम्मत रहेगा–
शास्त्र निर्णय :-
अथाश्विनामावस्यायां प्रातरभ्यंगः प्रदोषे दीपदानलक्ष्मी-पूजनादि विहितम् । तत्र सूर्योदयं व्याप्ति-अस्तोत्तरं घटिकाधिकरात्रिव्यापिनी दर्शे सति न संदेहः ।। (धर्मसिन्धु)
(अर्थात् कार्तिक अमावस्या को प्रदोष के समय लक्ष्मीपूजनादि कहा गया है। उसमें यदि सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के अन्तर 1 घड़ी (24 मिनट) से अधिक रात्रि तक (प्रदोषकाल) अमावस्या हो, तो बिना संदेह उसी दिन पर्व मनाए।
उभयदिने प्रदोषव्याप्तौ परा ग्राह्या । ‘दण्डैकरजनीयोगे दर्शः स्यात्तु परेऽहनि।
तदा विहाय पूर्वेद्यु परेऽह्नि सुखरात्रिकाः ।‘ (तिथितत्त्व)
अर्थात् यदि दोनों दिन प्रदोषव्यापिनी होय, तो अगले दिन करें-क्योंकि तिथितत्त्व में ज्योतिष का वाक्य है-एक घड़ी रात्रि (प्रदोष) का योग होय तो अमावस्या दूसरे दिन होती है, तब प्रथम दिन छोड़कर अगले दिन सुखरात्रि होती है।) यद्यपि-दीपावली के दिन निशीथकाल में लक्ष्मी का आगमन शास्त्रों में अवश्य वर्णित है परंतु कर्मकाल (लक्ष्मी पूजन, दीपदान-आदि का काल) तो प्रदोष ही माना जाता है। लक्ष्मीपूजन, दीपदान के लिए प्रदोषकाल ही शास्त्र प्रतिपादित है-
प्रदोषसमये लक्ष्मीं पूजयित्वा ततः क्रमात्।
दीपवृक्षाश्च दातव्याः शक्त्या देवगृहेषु च ।।
निर्णयसिन्धु, धर्मसिन्धु, पुरुषार्थ-चिन्तामणि, तिथि-निर्णय आदि ग्रन्थों में दिए गए शास्त्रवचनों के अनुसार दोनों दिन प्रदोषकाल में अमावस्या की व्याप्ति कम या अधिक होने पर दूसरे दिन ही अर्थात् सूर्योदय से सूर्यास्त (प्रदोषव्यापिनी) वाली अमावस्या के दिन लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा।
इसके अतिरिक्त दिवाली पर्व पर स्वाति नक्षत्र का होना भी अति आवश्यक है जोकि एक नवंबर 2024 को ही है।
शास्त्री दिनेश गौतम के अनुसार सभी शास्त्र-वचनों पर विचार करने के उपरान्त ही 1 नवम्बर, 2024 शुक्रवार को ही दीपावली पर्व तथा लक्ष्मीपूजन करना शास्त्रसम्मत होगा। सम्पूर्ण भारत में यह पर्व इसी दिन होगा। यही निर्णय भारत के अधिकतर पंचाङ्गकारों का भी है। परम्परा अनुसार तथा गत अनेक उदाहरण भी इसी मत को मान्यता देते हैं।
महालक्ष्मी के पूजन का समय :-
दिवाली-01नवंबर, शुक्रवार (कार्तिक, कृष्ण अमावस्या)
लक्ष्मी पूज़ा मुहूर्त-05:32 PM से O8:11 PM तक
प्रदोष काल- 05:32 PM से O8:11PM तक
वृषभ काल- 06:17 PM से 08:11 PM तक
अमावस्या तिथि प्रारंभ- 31 अक्टूबर, गुरुवार 03:53 PM
अमावस्या तिथि समाप्त-o1 नवंबर, शुक्रवार O6:17 PM
पूजन कैसे करें
इसी दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर दैनिक कृत्यों से निवृत होकर पितृगण तथा देवताओं का पूजन करना चाहिए । इसी दिन गोधूलि बेला में स्थिर लग्न में श्री गणेश पूजन , कलश पूजन षोडशमातृका पूजन के साथ भगवती लक्ष्मी का षोडशोपचार पूजन करना चाहिए इसके उपरांत महाकाली एवं महा सरस्वती का तथा कुबेर का पूजन भी विधिपूर्वक करना चाहिए तथा दीपावली पूजन के पश्चात घर में चौमुखा दीपक रात्रि भर प्रज्वलित करना सौभाग्य एवं लक्ष्मी वृद्धि का द्योतक माना जाता है । इसके अतिरिक्त दीपदान करना , वही खाता पूजन , धर्म स्थलों पर , गृह स्थलों पर दीप प्रज्ज्वलित करना शुभ रहेगा । इस दिन श्री सूक्त , लक्ष्मी सूक्त , पुरुष सूक्त , कनकधारा स्तोत्र , गणेश स्तोत्र सिद्धि दायक स्तोत्र का पाठ , जप-पाठ हवन इत्यादि करना शुभता को और अधिक बढ़ाता है ।