फर्जी दस्तावेजों को संलग्न कर बने सहायक प्रोफेसर के पद से सुप्रीम कोर्ट ने दिया याचिका कर्ता को बड़ा झटका

पूर्व की जयराम ठाकुर की बीजेपी सरकार में हिमाचल प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में दर्जनों फर्जी दस्तावेजों को संलग्न कर प्रोफेसरों, सहायक प्रोफेसरों के पदों पर नियुक्त किया हुआ है जिसका खुलासा खुलकर पिछले दो वर्षों से अमर ज्वाला ने पूर्ण दस्तावेजों के साथ खुलासा किया हुआ है।

शिमला विश्वविद्यालय, सरदार पटेल विश्वविद्यालय मंडी ,केंद्रीय विश्वविद्यालय धर्मशाला के कई लोगों को फर्जी दस्तावेजों के साथ नियुक्तियों के दस्तावेजों के साथ खुलासे किए हुए हैं। ऐसी फर्जी नियुक्तियों के कई मामले राज्य हाईं कोर्ट में विचाराधीन भी है। अमर ज्वाला एक खबर का खुलासा किया हुआ था कि  गलत तरीके से आर्थिक रूप से कमजोर होने का प्रमाण पत्र हासिल कर शिमला विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर का पद हासिल किया हुआ था।

हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी हासिल करने वाले शिक्षक को पहले राज्य हाईंकोर्ट  उनकी नियुक्ति रद्द की हुई थी , उसके बाद याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर दी हुई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट  से याचिका करता को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से सेवाएं रद्द करने के आदेश जारी कर दिए हैं।

सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश न्यायमूर्ति अभय एस. ओझा और न्यायमूर्ति ऑगस्टाइन जॉर्ज की डबल बेंच ने याचिकाकर्ता की अपील को तुरंत प्रभाव से खारिज कर दिया। इससे पहले हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट भी इसी प्रकार के आदेश जारी कर चुका है । इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी।

हिमाचल हाई कोर्ट के फैसले को ठहराया उचित 

यह नौकरी हासिल करने के लिए आवेदन के साथ हलफनामा दाखिल करना था. हलफनामे के पैराग्राफ-7 में याचिकाकर्ता ने झूठा बयान दिया कि उसके परिवार का कोई भी सदस्य नियमित या अनुबंध कर्मचारी नहीं है, जबकि वह खुद एक अनुबंध कर्मचारी था। हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय की ओर से साल 2023 के सितंबर महीने में असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति रद्द करने का फैसला दिया गया था। इसके बाद हाई कोर्ट के इस फैसले के विरुद्ध याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. अब याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट से भी झटका लगा है.

फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर हासिल की थी नौकरी से धोना पड़ा सुप्रीम कोर्ट से हाथ

इससे पहले हिमाचल हाई कोर्ट में याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया था कि प्रतिवादी ने आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का फर्जी प्रमाण पत्र जमा करवाया. अदालत को बताया गया था कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने 30 दिसंबर 2019 को सहायक प्रोफेसर (लोक प्रशासन) के पद को भरने के लिए विज्ञापन जारी किया था. यह नियुक्ति विश्वविद्यालय के लीगल सेंटर में की जानी थी. याचिकाकर्ता और प्रतिवादी के अलावा कई अन्य अभ्यर्थियों ने इसके लिए आवेदन किया था. 8 अप्रैल 2021 को इसके लिए साक्षात्कार लिए गए और प्रतिवादी का चयन किया गया. 9 अप्रैल 2021 को उसे सहायक प्रोफेसर के पद पर नियुक्ति दी गई.

आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग सर्टिफिकेट बनाने का अधिकार नहीं था

अदालत के समक्ष दलील दी गई कि प्रतिवादी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग का प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए हकदार नहीं था. 4 अक्तूबर, 2017 को उसकी नियुक्ति सहकारिता विभाग में इंस्पेक्टर के रूप में हुई थी. हालांकि यह नियुक्ति अनुबंध आधार पर थी, लेकिन राज्य सरकार की ओर से 11 जून 2019 को जारी दिशा-निर्देशों के तहत किसी भी सरकारी या गैर सरकारी संस्थान में नियमित या कॉन्टैक्ट पर नियुक्त व्यक्ति आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के प्रमाण पत्र के लिए पात्र नहीं है.

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