व्यास नदी की सुरम्य घाटी में मिलने वाले एक पक्षी रिवर लैपविंग (नदी टिटहरी) का अस्तित्व पारिस्थितिकी बदलाव के कारण संकट में है। अपनी विशिष्ट आवाज और सुंदरता से आकर्षित करने वाली नदी टिटहरी पक्षी की संख्या घटती जा रही है। जिसके चलते अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएल) ने इसे संकट के करीब पक्षी का दर्जा दिया है। यह गिरावट प्रकृति और मानवीय गतिविधि के बीच नाजुक संतुलन की याद दिलाती है। पक्षी प्रेमी और जीव विज्ञान के प्रवक्ता सूरज भाटिया ने बताया कि नदी टिटहरी एक सुंदर, मध्यम आकार का जलचर पक्षी है। इसकी विशेषता इसके आकर्षक काले, सफेद और भूरे-धूसर रंग के पंख और सिर पर एक काली शिखा है जिसे वह प्रदर्शन के दौरान उठाता है। उन्होंने बताया कि भारत की निवासी यह पक्षी मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप के उत्तरी और उत्तरपूर्वी भागों में पाई जाती है। भारत में प्रजनन का मौसम आमतौर पर मार्च से जून तक होता है। यह पक्षी कंकरीली और रेतीले किनारों पर ज़मीन खरोंचकर घोंसला बनाकर दो अंडे देते हैं। जैसा कि इसके नाम से पता चलता है नदी टिटहरी की निकटता नदियों और अन्य मीठे पानी के आवासों से जुड़ी हुई है। सूरज ने बताया कि स्थानीय पक्षी प्रेमियों द्वारा एकत्र डेटा से एक परेशान करने वाली तस्वीर सामने आती है। उन्होंने बताया कि लगातार आवास अतिक्रमण, कौवों द्वारा शिकार, आवारा कुत्तों द्वारा अंडों का शिकार, उनके आवास क्षेत्रों में कृषि पद्धतियों के बदलाव के कारण घोंसलों की तबाही और अनियंत्रित रेत खनन इस पक्षी के अस्तित्व के लिए प्रमुख खतरे पैदा कर रहे हैं। इसके अलावा मानवीय गतिविधियों से भी स्थिति और बदतर होती जा रही है। हालांकि शहरी क्षेत्रों में कचरा संग्रह प्रणाली आदि की व्यवस्था होने के बावजूद अभी भी नदी तटों पर कचरा फैंका जाता है। इसके अलावा सीवरेज उपचार संयंत्रों के बावजूद सीवरेज का पानी व्यास नदी से मिलता रहता है। साथ ही व्यास नदी के पानी में उतार-चढाव अक्सरी नदी टिटहरी के घोंसलों और प्रजनन स्थलों को डुबो देता है। उन्होंने बताया कि हाल ही शोघों से पता चला है कि जहां उत्तरी भारत के गंगा के मैदानी इलाकों में इनकी आबादी आपेक्षाकृत स्थिर है। वहीं व्यास नदी घाटी में इसकी संख्या में गिरावट आ रही है। नदी टिटहरी पक्षी नदी पारिस्थितिकी तंत्र के एक प्रहरी का कार्य करती है और व्यास नदी के स्वास्थ्य का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। लेकिन इस पक्षी की आबादी में गिरावट यह भी संकेत देती है कि हम तेज़ी से शहरी जैव विविधता खोते जा रहे हैं। सूरज भाटिया के अनुसार सरकार, प्रशासन, पक्षी प्रेमी, स्थानीय समुदाय और पर्यावरण संगठनों को मिलकर नदी टिटहरी के संरक्षण के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए जिससे इस खूबसूरत पक्षी को लुप्त होने से बचाया जा सके।
नदी टिटहरी का अस्तित्व खतरे में लुप्त हो रही है रिवर लैपविंग की यह प्रजाति
