घाटी के गढ़ गांव तक केंद्र और राज्य सरकारों की कृषि और उद्यान विभाग की विकासात्मक से कोसो दूर किसान भगवान।
सुभाष ठाकुर*******
चौहार घाटी की कई पंचायतें दूरदराज तो है ही लेकिन क्षेत्र की तरस्वान पंचायत के द्रगढ , तरस्वान और गढ़गांव एक सड़क के विवादित मामले ने क्षेत्र के तीन गांवों के जीवन को मुश्किल में धकेल डाला है। जिसके चलते गढ़गांव की स्थिति तो यह बनी हुई है कि जिला कुल्लू के मलाणा गांव में मिली हुई सुविधाओं से भी घाटी का यह गांव पिछड़ चुका है। विद्युत वोल्टेज कम सड़क सुविधा भी मात्र गढ़ों में तब्दील, किसानों को कृषि विभाग की एक भी सरकार की विकासात्मक योजनाओं की जानकारी तक नहीं , विभागीय अधिकारी आजतक वहां पहुंचे नहीं ,गढ़ गांव के किसानों ने अपना दर्द अमर ज्वाला से साझा करते हुए बयान किया।
सड़क के विवादित मामले का समाधान करने के लिए क्षेत्र की जनता ने आपसी सुलझाने का खूब प्रयास किया लेकिन मामला बिगड़ता रहा । प्रशासन द्वारा भी खूब प्रयास किया लेकिन बात बनी नहीं।

सड़क के विवादित मामले पर सियासी रोटियां नेताओं ने खूब सेंकी, नेताओं का वक्त निकलता गया मामला आज भी जस का तस बना हुआ है , जिसके कारण क्षेत्र के तीन गांवों की आजीविका पर बहुत बड़ा असर पड़ता न रहा है। सड़क सुविधाएं बिना आज के दौर का जीवन यापन करना मुश्किल हो चुका है। वह चाहे कृषि हो बागबानी हो या फिर अन्य रोजगार के साधन ही क्यों न हो सभी क्षेत्र में सड़क सुविधा बिना असर पड़ता है।

तरस्वान पंचायत के गढ़ गांव के लोग दूसरी जगह अपने जीवन यापन करने के लिए पलायन करने को मजबूर हो चुके हैं। गांव जोत के बिल्कुल तट पर स्थित है, लेकिन सरकार और प्रशासन की नजरों से दूर है। वहां न कृषि अधिकारियों ने कभी सुध ली और नहीं बागवानी अधिकारियों द्वारा क्षेत्र के स्वच्छ पर्यावरण के अनुसार वहां की भूमि पर उद्यान विभाग शिवा और जायका जैसे महत्पूर्ण योजनाओं की जानकारी तक मुहैया नहीं कर पाए। घाटी के गढ़ गांव तक केंद्र और राज्य सरकारों की कृषि और उद्यान विभाग की कोई भी विकासात्मक दुर्गम क्षेत्र के किसान तक नहीं पहुंचाई जा रही है और यहां तक कि एक भी किसानों की खेती की मिट्टी की जांच तक आजतक इस क्षेत्र में नहीं की गई है यह क्षेत्र इस विभागीय योजनाओं से कोसो दूर आखिर किसकी वजह से रखे गए हैं किसकी जिम्मेवारी बनती है ?
घाटी के कई ऐसे दुर्गम ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां किसानों की खेती में ऑर्गेनिक फसल बहुत अच्छी तैयार की जा सकती थी , लेकिन कृषि तथा बागबानी अधिकारियों ने खुद आज तक ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों के भोले भाले किसानों और बागानों के दर्द को समझा होता और धरातल पर कसरत की होती तो किसानों और बागवानों को राज्य और केंद्र सरकारों की विकासात्मक योजनाओं का लाभ जरूर मिला होता।
पिछले दो वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं ने गांव के लोगों का जीवन मुश्किल बना दिया है। तरस्वान पंचायत के द्रगढ, गढ़ और स्मालंग गांव तक सड़क सुविधाएं तो पहुंची हुई हैं, लेकिन पिछले तीन वर्षों से बरसात के दौरान इन तीनों गांव की सड़क की खस्ता हालत को सुधारने के लिए कोई उचित कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
बरसात के दौरान गढ़ गांव के साथ वाला नाले में बाढ़ आने से गांव का रास्ता जो पंचायत द्वारा पक्का बनाया हुआ था, बह बाढ़ में चुक गया है, लेकिन प्रशासन द्वारा गांव के उस रास्ते को अभी तक नहीं बनाया गया है। गांव वासियों को गढ़ में सरकारी गढ़ मिडल स्कूल के मैदान से आवाजाही के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
गढ़ गांव के कई घरों को खतरा बन चुका है, वहीं किसानों की सैकड़ों बीघा कृषि भूमि द्रगढ़ तक बाढ़ में बह चुकी है। बड़े बड़े पत्थरों की चट्टानों में तब्दील हुआ क्षेत्र लोगों को अपना जीवन यापन करना मुश्किल कर दिया है।
गढ़ गांव की महिलाओं का दर्द है कि उन्हें बरसात के दौरान अपने घरों को छोड़कर सुरक्षित जगह बरसात में जंगलों में जा कर रात गुजारनी पड़ती है। महिलाओं का कहना है कि उन्हें अपने बच्चों की शिक्षा तथा उनका पोषण कर पाना मुश्किल होता जा रहा है।

गढ़ गांव के लोगों का सामूहिक बयान है कि मजबूरन उन्हें अपने गांव से कहीं दूसरी जगह पकाएं करने को मजबूर होना पड़ रहा है। गांव के श्याम ठाकुर, सुरेंद्र, वीरेंद्र, साजू, सोहन सिंह ठाकुर ने कहा कि गांव की समस्या का समाधान जिला प्रशासन व सरकार द्वारा नहीं किया गया तो वह आने वाले विधानसभा चुनावों का कड़ा विरोध करेंगे।

