*** भूस्खलन होने से कृषि भूमि व लींडूर गांव के एक दर्जन घरों में आई बड़ी बड़ी दरारों सहमा पूरा गांव
*** क्या है लाहौल की कृषिभूमि में हो रहे भूस्खलन के मुख्य कारण ?
सरकार और प्रशासन को कैसे उठाने होंगे भूस्खलन बचाने के लिए उचित कदम
सुभाष ठाकुर*******
समुद्रतल से 10800 फीट की ऊंचाई पर स्थित हिमाचल प्रदेश के जिला लाहौल स्पीति मुख्यालय से लगभग 26 किलोमीटर की दूरी पर एक खूबसूरत लींडूर गांव सदियों से स्थापित हुआ है ।
लाहौल का यह लींडूर गांव पिछले कुछ वर्षों से भूस्खलन की जद्द में आया हुआ है। लिंडूर की पहाड़ी में कई किलोमीटर भूस्खलन निरंतर चलत हुआ है।
गांव की कृषि योग्य 200 बीघा भूमि में बड़ी बड़ी दरारें आ चुकी है दो से तीन फुट भूमि नीचे बैठ चुकी है । लींडूर गांव के कई घरों में दरारें आ चुकी है। गांव वाले सहम सहम कर अपना एक एक दिन कभी घर के भीतर तो कभी दूसरी सुरक्षित जगह जा पर छोटे छोटे बच्चों के रात गुजारने को मजबूर हुए हैं।
लींडूर गांव पर भूस्खलन की मुख्य वजह यह भी देखा गई है कि किसानों द्वारा अपनी कृषि भूमि पर कूल्हों से सिंचाई कर पहाड़ी में पानी जाने से पहाड़ी कमजोर होती रही और साथ हे मौसम के बदलने बदलाव का मुख्य कारण देखा जा रहा है।
लींडूर गांव के लिए बरसात की बारिश आफत बनने बाली है क्योंकि भूस्खलन के कारण भूमि में बड़ी बड़ी दरारें आई हुई है, बरसात होते ही बरसात का पानी दरारों में जाते ही गांव के अस्तित्व को खतरा बना हुआ है । घरों में आई हुई दरारें भी यही बयान कर रही है कि बारिश होते ही एक घर नहीं बल्कि पूरे लींडूर गांव के अस्तित्व ही मिट जाएगा।
लिंडूर गांव में कुल लगभग 14 घरों का भी की भुगौलिक परिस्थियों को ध्यान में रखते खूबसूरत निर्माण किया हुआ है।
गांव की कुल आबादी 250 बताई गई है। जिसमें अधिकांश परिवारों की संख्या जिला कुल्लू या दूसरी जगह बच्चों की पढ़ाई और सरकारी नौकरी के चलते बाहर रहते हैं।
लींडूर गांव में 200 बीघा कृषियोग्य भूमि है।
लींडूर में 14 घरों के विभिन्न विभिन्न परिवारों की कुल 250 आबादी की संख्या बताई जा रही है।
गांव वाले अपना जीवन यापन 200 बीघा कृषियोग्य भूमि पर अपने परिवार का पालन पोषण करते रहे हैं।
गांव वाले ने अपनी कृषि योग्य भूमि पर सेब ,पालम ,चैरी , खुमानी आडू के साथ साथ आलू ,मटर ,प्याज, गोभी, आइस बर्गर इत्यादि अनेकों नकदी फल और सब्जियों की फसल तैयार कर परिवार का पालन पोषण करते हैं ।
मौसम में तेजी से हो रहे बदलाव के कारण जिला लाहौल स्पीति में इसका जबरदस्त असर देखने को मिल रहा है।
ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, किसानों की भूमि के लिए सिंचाई करने के लिए पानी की कमी होनी शुरू हो चुकी है ।
लाहौल की कृषि योग्य भूमि दिन प्रतिदिन नाजुक होती जा रही है।
जिसका मुख्य कारण यह भी देखा जा रहा है कि किसानों द्वारा अधिक से अधिक फसल कम समय में पैदावार करने के लिए भूमि को पानी की कूल्हों से पूरी तरह से गिला रखने से भूस्खलन को बढ़वा मिल रहा है।
भूमि में पेड़पौधे की संख्या कम भूमि में पकड़ न होने से भूस्खलन की चपेट में एक लींडूर गांव ही नहीं बल्कि नदी नालों के आसपास वाले ऊंचाई वाले सभी क्षेत्रों भूस्खलन तेजी से होना शुरू हो चुका है।
जिला लाहौल स्पीति की कृषि भूमि के मिटने अस्तित्व को बचाने के लिए सरकार को चाहिए कि कृषि विभाग तथा बागवानी विभागों को एक कमेटी का गठन कर किसानों को जिला लाहौल स्पीति कूल्हों की सिंचाई करने से रोकना होगा ।
किसानों की खेती की सिंचाई के लिए पाइपों तथा संप्रीकलर करना अनिवार्य किया जाना चाहिए।
कूल्हों से दिनरात पानी खुला बहने से कृषि योग्य भूमि तथा पहाड़ियां कमजोर होती जा रही है।जिसका परिणाम जिला लाहौल स्पीति के लींडूर गांव में देखने को मिला है ।
लींडूर गांव के किसान भी इस बात से सहमत हुए हैं जिन्होंने गांव के मिटने अस्तित्व की आखरी जंग अब अपनी कृषि भूमि की सिंचाई को कूल्हों से नहीं बल्कि संप्रीकलर से करनी शुरू करना उचित माना है।
क्या कहा जिला परिषद अध्यक्ष वीना कुमारी तथा उपाध्यक्ष राजेश शर्मा व लींडूर गांव की जनता ने सुने ग्राउंग जीरो से अमर ज्वाला की रिर्पोट