एन जी टी तीर्थन नदी की सुनों पुकार , नदी किनारे खड़े हो रहे होटल व्यवसायों की गंदगी से घुट जाएगा रेनबो ट्राउट मछली के प्राण

सुभाष ठाकुर*******

हिमाचल प्रदेश के जिला कुल्लू के बंजार वैली के प्राचीन जंगलों के बीचों बीच ठंडे और साफ पानी  वाली तीर्थन नदी में पलने वाली रेनबो ट्राउट मछली का अस्तित्व खतरे में पड़ चुका है।

तीर्थन नदी की रेनबो ट्राउट मछली के मिटते अस्तित्व के बचाव में प्रदेश सरकार का मत्स्य विभाग, जिला प्रशासन , वन विभाग, टाउन एंड कंट्रीप्लानिंग, प्रदूषण कंट्रोल विभाग के तमाम आलाधिकारियों द्वारा राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) नियमों की धज्जियां उड़ाने की खुली छूट दे रखी है।

तीर्थन नदी के किनारों पर बड़े बड़े होटलों का निर्माण जितनी तेज गति से होना शुरू हुआ है उतनी तेजी से हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) नियमों की धज्जियां भी उड़ाई गई है।

तीर्थन जैसी नदी के किनारे होटलों का निर्माण तो बहुत ही तेज गति से होना शुरू हुआ है , क्या टाउन एंड कंट्रीप्लानिंग द्वारा होटल मालिकों को होटल निर्माण बिना सीवरेज व्यवस्था से होटलों की भारीभरकम  गंदगी तीर्थन नदी में छोड़ने की भी अनुमति दी है ?

तीर्थन जैसी पवित्र नदी के खुले बहाव में होटलों से निकलने वाले भारीभरकम मलमूत्र तथा अन्य खाद्य सामग्री की गंदगी नदी में खुले छोड़ कर रेनबो ट्राउट मछली के लिए किसी जहर से कम नहीं होगा जिससे रेनबो का अस्तित्व ही मिटा दिया जाएगा।

तीर्थन घाटी अपनी क्रिस्टल-क्लियर नदियों और झरनों के लिए प्रसिद्ध है, जो भूरे और इंद्रधनुषी ट्राउट की प्रचुर आबादी का घर हैं। मछुआरे बर्फ से ढकी चोटियों और हरे-भरे हरियाली की लुभावनी सुंदरता से घिरे हुए, कैच-एंड-रिलीज़ और मनोरंजक मछली पकड़ने दोनों का आनंद ले सकते हैं। तीर्थन नदी, विशेष रूप से, ट्राउट मछली पकड़ने के लिए एक लोकप्रिय स्थान है ।

तीर्थन नदी किनारे बड़े बड़े होटलों के निर्माण से इस क्षेत्र का पर्यावरण ही प्रदूषित नहीं होगा बल्कि तीर्थन नदी के स्वच्छ और ठंडे साफ पानी में रेनबो ट्राउट मछली का पानी भी प्रदूषित होते ही यह मछली की प्रजाति भी इस नदी से अपने अस्तित्व मिट जायेगा।

तीर्थन घाटी में पवित्र तीर्थन नदी के अतिक्रमण तथा नदी में कचरे और सेप्टिक टैंक के मल मूत्र के निस्तारण पर आज कल बहस छिड़ी है।

आज कल शाइरोपा के पास गुशैनी की तरफ गहिधार के पास नदी के अंदर बन रही प्रॉपर्टी चर्चा के केंद्र में है।

स्थानीय लोग नदी के अतिक्रमण तथा नदी की पवित्रता को लेकर चिंतित हैं। सोशल मीडिया में वायरल हो रहे कुछ वीडियो लोगों के बीच जागरूकता पैदा कर रहे है ।

घाटी में पर्यटन के अव्यवस्थित विकास को लेकर चर्चा है।

वीडियो में इस चर्चा के आधार पर फारेस्ट विभाग अपनी कार्यवाही कर रहा हैं।

फारेस्ट विभाग इस नदी में बन रही प्रॉपर्टी को लेकर डिमार्केशन कर रहा है, विभाग का कहना है एक बार हमने पहले भी डिमार्केशन किआ है। विभाग की माने तो वह प्रॉपर्टी मालकियत है और TCP विभाग ने इस प्रॉपर्टी को परमिशन दे रखी है।

लेकिन स्थानीय लोगों का कहना है कि मलकियत को लेकर कोई शंका नहीं है, असल विषय यह है कि पवित्र नदी में निर्माण कितना तर्क संगत है नदी से कितनी दूरी पर व्यावसायिक निर्माण होना चाहिये। इस बात को कानूनानुसार तय करना फारेस्ट विभाग की जिम्मेदारी है।

पवित्र नदी में कचरा ,तथा सेप्टिक वेस्ट का प्रवंधन संबंधित विभाग क्यों नहीं कर पा रहा है?

लोग ये जानने के लिये उत्सुक है कि TCP विभाग ने किस आधार पर और किस लिये इस प्रॉपर्टी को परमिशन दे रखी है। क्या ये होटल व्यवसाय के लिये व्यावसायिक प्रॉपर्टी है या कुछ और ? ये जानने का विषय है।

पॉल्युशन कंट्रोल बोर्ड कैसे ऐसी प्रॉपर्टी को परमिशन दे रहा है ? यह भी एक बहुत बड़ा गंभीर विषय है कि प्रदूषण विभाग के आलाधिकारियों द्वारा अपनी नजरें  ऐसे निर्माण कार्य पर बंद रखी हुई है, जो तीर्थन जैसे स्वच्छ नदी  किनारे इतने बड़े पैमाने पर निर्माण कर चला हुआ है।

स्थानीय लोगों का कहना है कि नदी का अतिक्रमण करना आम बात हो गया है, जबकि फारेस्ट विभाग को एक नहीं बल्कि नदी किनारे बनी सभी प्रॉपर्टी की डिमार्केशन करनी चाहिये जो पूरी घाटी में पर्यटन को अव्यवस्थित कर रहे हैं।

पवित्र नदी को लेकर देव समाज में भी अत्यंत रोष बढ़ता जा रहा है। क्योंकि घाटी के लोगों के लिये तीर्थन नदी आस्था तथा श्रद्धा का केंद्र है। घाटी में सिर्फ नदी ही नही जबकि नदी में भी जगह जगह पर देव समाज के आस्था के केंद्र हैं। हँस कुंड से लेकर चुली छो, नदी के आगे बढ़ते हुए गुशैनी का पवित्र संगम, उससे आगे सकर्णी की आल ऐसे स्थान है जो देवताओं के शक्ति केंद्र है तथा पूरे देव समाज के लिये श्रद्धा तथा आस्था के केंद्र सदियों से माना जाता है । इसलिये ये मुद्दा बहुत ही संवेदनशील बनता जा रहा है।

सोशल मीडिया में वीडियो पोस्ट करने वाले को कांगड़ा के एक व्यक्ति द्वारा फेसबुक मैसेंजर पर कुछ संदेश भी भेजे गए हैं की आप पर केस किया जाएगा,  वीडियो पोस्ट करने वाले के घर का पता भी पूछा गया है। इससे यही अंदाजा लगाया जा रहा है कि कोई प्रभावशाली व्यक्ति द्वारा तीर्थंन नदी के साथ यह निर्माण कार्य किया जा रहा है। कुल्लू जिला प्रशासन को चाहिए कि सबसे पहले नदी का फ्लड जॉन क्षेत्र की पैमाईश कर विभाग स्वीकृति देनी चाहिए थी।

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स्थानीय व्यक्ति द्वारा जब यह मामला सोशल मीडिया में उठाया तो उन्हें कांगड़ा के किसी अंजान व्यक्ति द्वारा उनके फेसबुक मैसेंजर पर उनके खिलाफ केस करने के लिए उनके घर का पता मांगा गया और उन्हें मैसेंजरंपर एक मोबाइल नंबर भी दिया गया कहा कि उन्हें इस नंबर कॉल करें।

जब अमर ज्वाला ने उस नंबर पर कॉल कर जानना चाहा तो उन्होंने साफ इंकार किया कि वह बंजार की तीर्थन  घाटी में कोई निर्माण कार्य नहीं कर रहे हैं।

जिला प्रशासन को जांच करने चाहिए कि  प्रदूषण बोर्ड द्वारा होटलों के निर्माण पर किस श्रेणी की अनुमति दी जा रही है , वन विभाग द्वारा क्या सच में वन क्षेत्र की निशान देही कब की गई है , क्या मत्स्य विभाग से अनुमति मिली है कि नदी किनारे व्यवसायिकी होटल से होने वाली निकासी की गंदगी से रेनबों ट्राउट मछली को होने वाले नुकसान की अनुमति दी हुई है या नहीं। टाउन एंड कंट्रीप्लानिंग ने किस उद्देश्य के लिए नदी किनारे निर्माण कार्य की अनुमति दी है । वहीं नैशनल हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) के आलाधिकारियों को चाहिए कि हिमाचल प्रदेश में हो रहे अवैध खनन और निर्माण कार्यों के दौरान नियमों का पालन न करने वालों पर सख्ती से कदम उठाकर कार्यवाही अमल में लानी होगी।

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क्या बोले डीएफओ बंजार

डीएफओ बंजार मनोज कुमार से जब सारे मामले की जानकारी जानना चाहा तो उन्होंने कहा यह निर्माण कार्य फिलहाल रोका हुआ है।

उन्होंने कहा कि अप्रैल 2024 में पटवारी की उपस्थिति में निशान देही हो चुकी है, जिसमें मालूम हुआ कि यह खसरा  नंबर 25 है जो मलकीयत भूमि है।

उन्होंने यह भी कहा है कि उन्होंने जिला उपायुक्त को  मामले से संबंधित पत्र भी लिखा हुआ है , एक बार फिर से निशान देही वन रेंज क्षेत्र अधिकारी की उपस्थिति में की जाएगी तब तक कार्य रोक दिया गया है। 

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हिमालियन नीति अभियान के अध्यक्ष गुमान सिंह ठाकुर ने कड़े तेवरों को अपनाते हुए कहा कि प्रदेश सरकार और विभागीय अधिकारियों द्वारा नेशन ग्रीन ट्रिब्यूनल के नियमों की धज्जियां तो उड़ाई जा रही है साथ में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के उन आदेशों की अवेहलना की जा रही है।  

नदियों के 100 मीटर के दायरे में निर्माण कार्य पर रोक लगाई जाएगी। हिमाचल प्रदेश में बाढ़ ने तबाही मचाई है। नदी-नालों के किनारे 420 भवन ध्वस्त हो गए हैं, जबकि 2,300 से ज्यादा मकानों को भारी नुकसान हुआ है। 100 से ज्यादा लोगों की जानें गई हैं। इनको ध्यान में रखते हुए सरकार नदियों के किनारे निर्माण कार्य के नियमों में बदलाव करने जा रही है। लेकिन किसी ने कोई कदम नहीं उठाया ।

हिमालियन नीति अभियान के अध्यक्ष गुमान सिंह का कहना है कि तीर्थन नदी के दोनों तरफ मलकीयत भूमि पर जो होटलों का निर्माण होता जा रहा क्या क्या भविष्य में तीर्थंन की सुंदरता बच पाएगी ?

उन्होंने कहा कि बहुत जल्द नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के मामले की गंभीरता से जांच करवाई जाएगी।

 

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