प्राचीन देव नीति से मनाया मार्कण्डेय ऋषि मंगलौर का कंढेरी “बीठ” का उत्सव

***मान्यता है कि इस उत्सव में भगवान विष्णु अपने सभी अनुयायियों के बीच उपस्थिति दर्ज करवाते हैं

*** सिराज के हजारों लोगों ने बड़े ही हर्षौल्लास के प्राचीन संस्कृति के साथ मनाई अपनी फागली उत्सव
अमर ज्वाला// मंडी , कुल्लू

वैदिक और पौराणिक दोनों देवताओं की पूजा आज भी यहाँ प्राचीन अनुष्ठानों और संस्कारों के अनुसार की जाती है।
हिमाचल प्रदेश का अधिकांश क्षेत्र अपने देवी देवताओं नीति और समाज में गहरी आस्था बनाए हुए हैं।
आधुनिकता की इस दौड़ के बीच प्रदेश की सबसे प्राचीन धरोहर देव समाज और देव नीतियों में राजनीतिक स्वार्थतता की बेड़ियों में बांधती जा रही है लेकिन ग्रामीण और प्राचीन मंदिरों में स्थापित सैकड़ों वर्षों से विभिन्न देवी देवताओं के सभी उत्सवों को प्राचीन पद्धति से आज भी बड़े ही हर्षौल्लास से मनाए जाते हैं , ऐसे उत्सवों में हजारों लोगों की आस्था का सैलाब आज भी देखने को मिलता है।
मंडी-कुल्लू सराज के केंद्र मंगलौर में ऐतिहासिक कंढेरी “बीठ” पारंपरिक रूप में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। दो रियासतों के देवता ऋषि मार्कण्डेय और स्थानीय देवता आदि ब्रह्मा को समर्पित इस उत्सव के साथ ही सराज में फागली पर्व संपन्न हो गया है। प्रत्येक तीसरे साल कंढेरी गांव में मनाए जाने वाले इस देव उत्सव में हजारों लोगों और देवलुओं ने भाग लिया। देवता मार्कण्डेय के आदेशानुसार जंगली फूलों और नरगिस से तैयार बीठ को पहले दिनभर नचाने के बाद देरशाम लोगों के बीच फैंका गया और गांव के ही एक युवक रवि ने कड़ी मशक्कत के बाद इसे पकड़ने में सफलता पाई। मान्यता है कि भगवान विष्णु के मोहिनी अवतार इस बीठ को पकड़ने से मनोकामना पूरी हो जाती है। मान्यता यह भी है कि इस उत्सव में भगवान विष्णु अपने सभी अनुयायियों के बीच उपस्थिति दर्ज करवाते हैं

हर वर्ष भगवान विष्णु फागली उत्सव में इस बीठ और मुखौटेधारियों के रूप में धरती पर आते हैं और पूरे एक माह फागली उत्सव में गांव गांव लोगों के बीच दर्शन देकर फ़िर जनता के बीच अचानक गायब होकर वापस चले जाते हैं। जिस व्यक्ति के हाथ में ये नरगिस फूलों का गुच्छा आता है उसको वरदान माना जाता है। जिसे ये आशीर्वाद मिलता है वो व्यक्ति खुशी से धाम खिलाता है जहां देवता अपने सैकड़ों देवलुओं सहित जाते हैं। उत्सव में दिनभर पहाड़ी नाटी और शाम को देवता और बीठ के साथ पारंपरिक नृत्य खास आकर्षण रहे। जब बीठ फैंका गया तो लोगों में काफी जोश देखा गया। हजारों लोग इस देव उत्सव के गवाह बने।

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